1-अविरल क्रम/ शशि पाधा
भोगा न था चिर सुख मैंने
और न झेला चिर दुख मैंने
संग रहा जीवन में मेरे
सुख और दुख का अविरल क्रम
कभी विषम था, कभी था सम
किसी राह पर चलते चलते
पीड़ा से पहचान हुई
अँखियों के कोरों से पिघली
फिर भी मैं अनजान रही
हुआ था मुझको मरुथल में
क्यूँ
सागर की लहरों का भ्रम?
शायद वो था दुख क्रम।
कभी दिवस का सोना घोला
पहना और इतराई मैं
और कभी चाँदी की झाँझर
चाँद से लेकर आई मैं
प्रेम हिंडोले बैठ के मनवा
गाता था मीठी सरगम
जीवन का वो स्वर्णिम क्रम।
पूनो और अमावस का
हर पल था आभास मुझे
छाया के संग धूप भी होगी
इसका भी एहसास मुझे
जिन अँखियों से हास छलकता
कोरों में वो रहती नम
समरस है जीवन का क्रम।
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2- कुछ पल/ सुरभि डागर
कुछ पलों में
बड़ा मुश्किल होता है
भावों को शब्दों में पिरोना,
बिखर जाते हैं कई बार
हृदयतल में
मानों धागे से मोती
निकल दूर तक
छिटक रहे हों।
अनेकों प्रयास कर
समेटने के; परन्तु
छूट ही जाते कुछ
मोती और
तलाश
रहती है बस
धागे में पिरोकर
माला बनाने की
रह जाती है बस अधूरी-सी कविता
कुछ गुम हुए
मोतियों के
बिना ।
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3- निधि कुमारी सिंह
1-ये सफ़र न खत्म होगा
ये
सफऱ न खत्म होगा
आज
हकीकत में
तो
कल यादो में
ये
सिलसिला जारी रहेगा
क्योंकि
ख्वाबों में ही सही
पर
अकसर हमारी मुलाकातें होती रहेंगी
फासले
तो बेशक़ रहेंगे
पर
कभी ये सफ़र न खत्म होगा
कुछ
यादों को हमने समेटा है
और
कुछ यादें, जिन्हें आपने सँजोया है
उन्हीं
को सँभालते हुए
ये
सफऱ यों ही बरकरार रखेंगे
न
सोचना कि यह सफऱ यहीं तक था;
क्योंकि
ये सफऱ न खत्म होगा
सफ़र
की यह दहलीज ही ऐसी है
जहाँ
सफलता की मुस्कान है
पर
फिर भी नम हैं दोनों की आँखें;
क्योंकि
पल है यह विदाई का
हम
दूर रहकर भी पास रहेंगे
एक
दूजे के यादों में जिएँगे
यों
ही मुस्कुराते रहेंगे हम और आप
कभी
याद करके तो कभी याद आकर
परन्तु
ये सफ़र कभी खत्म न होगा ।
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