पथ के साथी

Friday, July 17, 2015

सीमाएँ-


डॉ.कविता भट्ट

सीमाएँ
प्रगाढ़ होती निरंतर किसी वृद्धा के चेहरे की झुर्रियों -सी
असीम बलवती- वर्गों की, कागजों, देशों की
सीमाएँ  वर्गों की
तय करती अंधे-बहरे-गूँगे मापदंड,
अद्भुत किन्तु सत्य श्वेत-श्याम-रंग-बेरंग

मेहनत, विफलता और संघर्ष फिर भी,
इधर भूख और प्यास भी अपराध -से  हैं

आराम, सफलता और विजय के दावे ही
उधर दावतों का नित संवाद- सा है  
        सीमायें कागजों की
        तय करती पारंगतता सच्चे-झूठे प्रमाणों से
संचालक अनकही-अनसुनी-अनदेखी पीड़ा के

इधर गली कूंचे का मैकेनिक छोकरा
असफल ही कहलाता है मैला-कुचैला,

उधर अनाड़ी टाई पहने सफल ही कहलाता
कागज धारी तथाकथित इन्जिनीयर छैला
सीमाएँ- यें देशों की-
संघर्ष, युद्ध, शांति, संधियाँ, वार्ताएँ
संकुचन-प्रसारण, सफलताएँ-विफलताएँ

इन्सान तो क्या-पौधों, पशु-पक्षियों पर
लगवाती लेबल, बंधवाती ट्रांसमीटर

इन्सान है ;परन्तु हिन्दुस्तानी-पाकिस्तानी तय करती
नदी निरुत्तर, इधर या उधर का पानी तय करती

सीमाएँ-

प्रगाढ़ होती निरंतर किसी वृद्धा के चेहरे की झुर्रियों सी
असीम बलवती- वर्गों की, कागजों, देशों की
-0-
(दर्शन शास्त्र विभाग,हे०न० ब० गढ़वाल विश्वविद्यालय ,श्रीनगर गढ़वाल          ,उत्तराखंड)