पथ के साथी

Tuesday, September 20, 2011

मन रोता है (हाइकु)

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

तोड़ें सपने
जब-जब अपने
मन रोता है

भीगा कम्बल
मन पर लिपटे
भारी होता है । 1

ठोकर खाते
पग को सहलाते
चल देना है

नहीं रुकना ,
गिरकर  उठना
बल देना है ।2

मेघा बरसे
या कभी न बरसे
फ़सलें बोना

आँसू उमड़ें
हूक बन घुमड़ें
जीभर रोना ।3

जनम हुआ
तब ढोल बजे थे
गाए सोहर

उड़ा है पाखी
कर खाली पिंजरा
खाली है घर । 4

भुजा कटी थी
बीच सफ़र में ही
रोना मुश्किल

आखर बाँचे
पर कोई न बाँचे
टूटा ये दिल । 5

मुँह मोड़ना
नहीं सीखा कभी था
मैं क्या करता

बस चलता
तो संग में चलता
संग मरता । 6

निकले तुम
सचमुच पाहन
गिरिवर के

दगा दे गए
तारे बनकरके
क्यों अम्बर के ?7 ।
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