रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
तोड़ें सपने
जब-जब अपने
मन रोता है
भीगा कम्बल
मन पर लिपटे
भारी होता है । 1 ।
ठोकर खाते
पग को सहलाते
चल देना है
नहीं रुकना ,
गिरकर उठना
बल देना है ।2 ।
मेघा बरसे
या कभी न बरसे
फ़सलें बोना
आँसू उमड़ें
हूक बन घुमड़ें
जीभर रोना ।3 ।
जनम हुआ
तब ढोल बजे थे
गाए सोहर
उड़ा है पाखी
कर खाली पिंजरा
खाली है घर । 4 ।
भुजा कटी थी
बीच सफ़र में ही
रोना मुश्किल
आखर बाँचे
पर कोई न बाँचे
टूटा ये दिल । 5 ।
मुँह मोड़ना
नहीं सीखा कभी था
मैं क्या करता
बस चलता
तो संग में चलता
संग मरता । 6 ।
निकले तुम
सचमुच पाहन
गिरिवर के
दगा दे गए
तारे बनकरके
क्यों अम्बर के ?7 ।
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