रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
सन्देश
सभी खोए,किस बीहड़ जंगल में
हूक- सी उठती है ,रोने को पल पल में।
पीड़ाएँ अधरों पर आकरके सोती हैं
बीती बातें भी यादों में आ रोती हैं।
पलभर को रुका नहीं आँसू का रेला है ।
सूने
अम्बर में मेरा चाँद अकेला है।
हिचकी ले रही हवा ये कैसी बेला है।
आँसू भीगी पलकें, उलझी हैं अब अलकें
आँसू पोछे ,सुलझा दे अब हाथ न सम्बल के
हिचकी ले रही हवा ये कैसी बेला है।
आँसू भीगी पलकें, उलझी हैं अब अलकें
आँसू पोछे ,सुलझा दे अब हाथ न सम्बल के
उलझन
में हरदम जीवन छूटा मेला है।
![](https://1.bp.blogspot.com/-kzl6adq2WHU/TJMdE213BLI/AAAAAAAAAlM/xh9D5DPtAyY2DXphxzRSJt9-q4e58y4XwCPcBGAYYCw/s1600/i%25E0%25A4%2586%25E0%25A4%2581%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2582.jpg)
हूक- सी उठती है ,रोने को पल पल में।
पीड़ाएँ अधरों पर आकरके सोती हैं
बीती बातें भी यादों में आ रोती हैं।