पथ के साथी

Tuesday, February 5, 2019

875-मेरा चाँद अकेला है।

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


सूने अम्बर में मेरा चाँद अकेला है।
हिचकी ले रही हवा ये कैसी बेला है।
आँसू भीगी पलकें, उलझी हैं अब अलकें
आँसू पोछे ,सुलझा दे अब हाथ न सम्बल के
उलझन में हरदम जीवन  छूटा मेला है।

सन्देश सभी खोए,किस बीहड़ जंगल में
हूक- सी उठती है ,रोने को पल पल में।
पीड़ाएँ अधरों पर आकरके सोती हैं
बीती बातें भी यादों में आ रोती हैं।
पलभर को रुका नहीं आँसू का रेला है ।