पथ के साथी

Sunday, May 31, 2020

997-अनुभूतियाँ


प्रीति अग्रवाल
1.
ख़ामोशी, ख़ामोश नहीं अब
मुझसे है बतियाती,
नए-पुराने, खट्टे-मीठे
किस्से खूब सुनाती!
2.
नई सहेली खूब मिली है
जिसका नाम तन्हाई,
कतराते हैं क्यों सब इससे
अब तक जान न पाई!
3.
तुम रूठे हो जबसे, क़यामत है आई
मेरी कविता भी रूठी, सूखी जाए है स्याही!
4.
टूटता तो दिल है, फिर जाने ये क्या है...
जो आँखों में चुभता है, लावा-सा बहता है...।
5.
ज़ख्म दिल के, तू दिल में ही रखना छिपा
बस कुरेदेगी दुनिया, .....वही जानती है।
6
अपने होंठों को, तो सी लूँगी, मगर....
इन धड़कनों का क्या, जो शोर मचाती हैं...।
7
जो रोकर, मुकद्दर बदलते अगर
हम दरिया बहाते, .....तुम सैलाब लाते।
8
तरा- तरा सही, हो रहा है यकीं
अपने होने का मक़सद, समझ आ रहा है।
9
सात घर छोड़े, वो डायन भली
ये आदमी की जात, तो सगों को न छोड़े!!
10
रोटी, कपड़ा.....और मकान
ज़िन्दगी फिर सिमट के, वहीं आ गई है।
11
रुक गया कारवाँ, तो कारवाँ न रहेगा
मुकद्दर में उसके, तो चलना लिखा है...।
12
ऐ ज़िन्दगी तू किसी, भुलावे में तो नहीं
बस थकी हूँ मैं, अभी टूटी नहीं!
13
खामोशी से पिए आँसू , वो नारी हुई
मीठी झील देखो, सागर-सी खारी हुई!
14
कौन ग़म, क्या खुशी, अब ये कैसे हो तय
आँख उसमें भी नम, आँख इसमें भी नम!
15
अब तुझसे भला, क्या क्या मैं माँगू
जो रोना भी चाहूँ, तो आँसू नहीं....।
16
व्यापार का है, अलग क़ायदा....
प्यार किश्तों और शर्तों में, दम तोड़ देगा!
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