रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जब-जब
दानव बीच सड़क पर
चलकर आएँगे ।
किसी भले मानुष के घर को
आग लगाएँगे ।
अनगिन दाग़ लगे है इनके
काले
दामन पर
लाख देखना चाहें फिर भी
देख न पाएँगे ।
कभी जाति कभी मज़हब के
झण्डे
फ़हराकर
छीन कौर भूखों का गुण्डे
खुद खा जाएँगे ।
नफ़रत बोकर नफ़रत की ही
फ़सलें
काटेंगे
खुली हाट में नफ़रत का ही-
ढेर लगाएँगे ।
तुझे कसम है हार न जाना
लंका
नगरी में
खो गया विश्वास कहाँ से
खोजके लाएँगे
।
इंसानों के दुश्मन तो हर
घर
में बैठे हैं
उनसे टक्कर लेने वाले -
भी मिल जाएँगे ।
-0-
( रचना-22-12
-1994; सानुबन्ध मासिक -अंक अगस्त 1995 में प्रकाशित; आकाशवाणी अम्बिकापुर से 20-02-1998 को प्रसारित)