पथ के साथी

Thursday, September 19, 2013

बीच सड़क पर

रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

जब-जब दानव बीच सड़क पर
चलकर आएँगे ।
किसी भले मानुष के घर को
आग लगाएँगे ।
अनगिन दाग़ लगे है इनके 
काले दामन पर
लाख देखना चाहें फिर भी
देख न पाएँगे ।
कभी जाति कभी मज़हब के
झण्डे फ़हराकर
छीन कौर भूखों का गुण्डे
खुद खा जाएँगे ।
नफ़रत बोकर नफ़रत की ही
फ़सलें काटेंगे
खुली हाट में  नफ़रत का ही-
ढेर लगाएँगे ।
तुझे कसम है  हार न जाना
लंका नगरी में
खो गया विश्वास कहाँ से
खोजके लाएँगे
इंसानों के दुश्मन तो हर
घर में बैठे हैं
उनसे  टक्कर लेने वाले -
भी मिल जाएँगे ।

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( रचना-22-12 -1994; सानुबन्ध मासिक -अंक अगस्त 1995 में प्रकाशित; आकाशवाणी अम्बिकापुर से 20-02-1998 को प्रसारित)