रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
हमने लिखा-
चिड़िया उड़ो तुम
तोड़ पिंजरा
नाप लो  ये गगन
छू लो क्षितिज !
पार न कर सके
लेकिन हम
अपना ही आँगन ।
लाखों बातें कीं
लाखों बातें कीं
तोड़कर पहाड़ 
नदी लाने की,
तोड़ न सके कभी
जर्जर ताला
सदियों से था जड़ा
रूढ़ियों पर,
हमारी सोच पर
डरता मन ;
टूट न जाए कहीं
ये घुन-खाया 
दरवाज़ा  पल में
जो छुपाए है
कमज़ोर हाथों को-
उन हाथों को
जो कभी  नहीं बढ़े
मुक्ति पाने को
पिंजरों में बन्द ही
लिखते रहे
सदा मुक्ति का गीत 
होकर भयभीत ।
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