पथ के साथी

Monday, October 31, 2016

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गीत
सुनीता काम्बोज
चौदह वर्षों बाद राम जी,लौट अवध में आए थे
अवधवासियों ने खुश होकर ,घी के दीप जलाए थे ।

कार्तिक की अमवस्या का दिन,पावन बड़ी दिवाली है
कहते इस दिन घर आते ये ,धन वैभव खुशहाली है ।
इस दिन हरि ने नरसिंह बनकर ,सारे पाप मिटाए थे
अवधवासियों ने खुश होकर ,घी के दीप जलाए थे ।

साँझ ढले सब दीप जलाकर ,लक्ष्मी पूजन करते हैं
जगमग दीपक तम से लड़कर,अंधकार को हरते हैं ।
त्योहारों की इस खुशबू ने घर आँगन महकाए थे
अवधवासियों ने खुश होकर ,घी के दीप जलाए थे ।
गली - गली सब द्वार सजाते ,अदभुत बड़े नजारें हैं
ऐसा लगता आज धरा पर ,उतरे सभी सितारें हैं ।
छट गए अब वो  धीरे धीरे,जो घन काले छाए थे
अवधवासियों ने खुश होकर ,घी के दीप जलाए थे ।