पुष्पा मेहरा
1
हँस –हँस कलिका डोलती, भौंरे पियें पराग ।
अल्हड़ बाला ये हवा , गाये बिरहा – फाग ।।
2
हवा फागुनी चल रही, मनवा हुआ अधीर
तन पे लिपटी धूल को,
लेता मान अबीर ।।
3
3
रंग- भरी पिचकारियाँ, भरतीं मन में रंग ।
बृज की होली खेलते,श्याम
गोपियों संग ।।
4
4
राग- कपट की होलिका ,बैठी
पाँव पसार ।
जा दिन ये दोनों जलें,जग पावे निस्तार।।
5
5
श्याम रंग में मैं रमी, नाना रंगों- बीच ।
जल सिंचित पंकज रहे, सदा कीच
के बीच ।।
6
चोली दामन -से रहें , रंग
रश्मि के साथ ।
आया फागुन रँग रहे , धरा -वधू
के हाथ ।।
7
तितली- मन उड़ता फिरा , दूर गाँव
के छोर ।
महुआ के घट रीतकर , उड़ा सरों की ओर ।।
-0-
pushpa .mehra@gmail
.com