पथ के साथी
Tuesday, June 2, 2020
998
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1-तूफ़ान
सड़क पर
नामी
या बेनाम सड़क पर
होते
सारे काम सड़क पर
जब
देश लूटता राजा
कोई
करे
कहाँ
शिकायत,
कुर्सी पर कुछ बैठे दाग़ी
एकजुट
हो
करें
हिमायत ;
बेहयाई
नहीं टूटती ,
रोज़ उठें तूफ़ान सड़क पर ।
दूरदर्शनी
बने हुए
इस
दौर के
भोण्डे
तुक्कड़,
सरस्वती
के सब बेटे
हैं घूमते
बनकर
फक्कड़ ;
अपमान
का गरल पी रहा
ग़ालिब का
दीवान सड़क पर ।
खेत
छिने , खलिहान लुटे
बिका
घर भी
कंगाल
हुए ,
रोटी,
कपड़ा, मन का चैन
लूटें
बाज़ ,
बदहाल
हुए ;
फ़सलों
पर बन रहे भवन
किसान लहूलुहान सड़क पर ।
मैली
चादर रिश्तों की
धुलती
नहीं
सूखा
पानी,
दम
घुटकर विश्वास मरा
कसम-सूली
चढ़ी
जवानी;
उम्र
बीतने पर दिया है
प्यार
का इम्तिहान सड़क पर । (8फ़रवरी, 2011)
-0-
2-बीच
सड़क पर
जब-जब
दानव
बीच
सड़क पर
चलकर आएँगे।
किसी
भले
मानुष
के घर को
आग लगाएँगे।
अनगिन
दाग़
लगे हैं इनके
काले दामन पर
लाख देखना –
चाहें
फिर भी
देख न पाएँगे।
कभी जाति
कभी मज़हब
के
झण्डे फ़हराकर
गुण्डे कौर
छीन
भूखों का
खुद खा जाएँगे।
नफ़रत
बोकर
नफ़रत
की ही
फ़सलें काटेंगे
खुली
हाट में
नफ़रत
का ही-
ढेर लगाएँगे।
तुझे
कसम है
हार न
जाना
लंका नगरी में
खो गया
विश्वास
कहाँ से
खोजके लाएँगे।
इंसानों
के
दुश्मन
तो
हर घर में बैठे हैं
उनसे
टक्कर
लेनेवाले-
भी मिल जाएँगे।
-0-
3-इस शहर में
पत्थरों के
इस शहर में
मैं जब से आ गया हूँ ;
बहुत गहरी
चोट मन पर
और तन पर खा गया हूँ ।
अमराई को न
भूल पाया
न कोयल की ॠचाएँ ;
हृदय से
लिपटी हुई हैं
भोर की शीतल हवाएँ ।
बीता हुआ
हर एक पल
याद में मैं
पा गया हूँ ।
शहर लिपटा
है धुएँ
में ,
भीड़ में
सब हैं
अकेले ;
स्वार्थ की है
धूप गहरी
कपट के हैं
क्रूर मेले ।
बैठकर
सुनसान घर
में
दर्द मैं सहला
गया हूँ ।
-0-(04-06-96)
-0-
Subscribe to:
Posts (Atom)