प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'
1-सिर्फ़ मैं
ये अहं ,
बड़ा दुखदायी है,
अजगर सी ,
कलस्याही है,
जिससे इसको
दूध पिलाया,
समझो लिखी
जुदाई है!
-0-
2: रज़ामंदी
सोचती हूं क्या माँगू?
जो तूने ,
एक हक़ का
हकदार किया!
चल,
यों कर मौला-
तेरी रज़ा
और मेरी रज़ा
एक हो जाए!
कभी तू कहे
तो मैं मान जाऊँ,
और कभी मैं कहूँ
तो तू मान जाए!!
-0-
3- वक़्त
समझने लगी हूँ
वक्त को
वक्त की नज़ाकत को !
सोचती तब भी थी
सोचती अब भी हूँ,
बस,
ज़ाया हो वक़्त
ये हिमाकत नहीं!!
-0-
4- बधाई
अम्मा जी बधाई
घर आपके,
लक्ष्मी है आई!!
अम्मा हर्षाई।
बाबा तुनके,
बोझा है ढोना
जो सारी उमर,
अशर्फ़ी की बोरी
कहने से,
क्या होगा कम!!??
-0-
5-पतंग
मैं रंगीली
और मनचली
नील गगन
की और उड़ी!
फिक्र मुझे
न धरा पड़ूँ,
न शून्य में
खो जाने का।
मैं इतराऊँ
मन मुस्काऊँ,
डोरी तेरे
हाथ थमी !!
-0-
6- श्याम बसेरा (ब्रज भाषा में)
देख ले हरिया-
मोरे मन श्याम बसेरा,
पहले ही दीजू कहाए,
अब ब्याहे ,तो ब्याह ले!!
हरिया हासा -
ले मिल गई जोड़ी
मेरो मन भी श्याम समाए!!!
-0-
7- मैं
ये 'मैं' की अकड़,
ये 'मैं' की तड़ी,
देखो न कितनी
भारी पड़ी!
मकड़ी हो जैसे
जाल मे फँसी,
दुनिया ये सारी,
अकेली खड़ी!!
-0-
8-सूझबूझ
मिल बैठ ग्वलनियाँ
करे सुझाई,
किसना नाम
कोई मत राखियों
घनो सतावै!!
राम दुहाई!
कैसी मत बिसराई,
गाँव भर अब,
गोपाल गोविंद,
मुरारी कन्हाई!!
-0-