पथ के साथी

Friday, March 17, 2023

1303-चाँदी का गुच्छा

 अंजू खरबंदा


 

शादी के उपहारों में

ससुराल के रिश्तेदारों की ओर से

मुझे मिला था एक चाँदी का गुच्छा

जो पड़ा रहा वर्षो तक अलमारी में!

सामान सहेजते हुए

अक्सर ही हाथ में लेकर उसे

निहारती देर तक

तक समझ नहीं थी

कि ये सिर्फ चाबी का छल्ला भर नहीं है

इससे जुड़ा है पूरा परिवार

परिवार से जुड़ा हर सदस्य

हर सदस्य की सौ- सौ परेशानियाँ

उन परेशानियों का हल ढूँढने की जिम्मेदारी!

सासू माँ के जाने के बाद

जब जिम्मेदारियाँ सिर पर पड़ी

निभाना पड़ा सब अकेले ही

हर रिश्ते की सार-सँभाल करते -करते

कितनी ही बार याद करती हूँ

कि ऐसे वक़्त सासू माँ क्या करती

कौन-सा लेती निर्णय

किससे करती सलाह-मशवरा

रिश्तों को निभाते-निभाते

उलझनों से घिरी मैं

महसूस करती हूँ बेहद करीब

स्नेहमयी सासू माँ को

उसके द्वारा लिए गए निर्णयों को

उन निर्णयों पर अडिग रहने के

उनके विराट व्यक्तित्व को!

वे सास होते हुए भी

मेरे अंग- संग माँ-सी रही

माँ होते हुए सास भी बनी रहीं

मुश्किल घड़ियों में

बस याद आती है

 सासू माँ!

और तब चाँदी का भारी गुच्छा

एकाएक लगने लगता है भारहीन!

-0-

(13 मार्च 2023)