बहुत बोल चुके
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
बहुत बोल चुके अब न बोलो
अपने मन की गाँठ न खोलो ।
गाँठ खोलकर अब तक तुमने
जितना भी था सभी गँवाया ।
मेरे यार ज़रा बतलादो
बदले में तुमने क्या पाया ?
बहुत तोल चुके अब न तोलो।
जिनको अब तक तुमने तोला
उन सबको पाया है पोला ।
वार किया उसने ही छुपकर
जिसको तुमने समझे भोला ।।
अब सबके मन अमृत न घोलो ।
अमृत घोला जिसके मन में
उसका मन विष-बेल हो गया ।
धोखा देकर खिल-खिल हँसना
उन लोगों का खेल हो गया ।।
बहुत बोल चुके अब न बोलो
अपने मन की गाँठ न खोलो ।
…………………………
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
बहुत बोल चुके अब न बोलो
अपने मन की गाँठ न खोलो ।
गाँठ खोलकर अब तक तुमने
जितना भी था सभी गँवाया ।
मेरे यार ज़रा बतलादो
बदले में तुमने क्या पाया ?
बहुत तोल चुके अब न तोलो।
जिनको अब तक तुमने तोला
उन सबको पाया है पोला ।
वार किया उसने ही छुपकर
जिसको तुमने समझे भोला ।।
अब सबके मन अमृत न घोलो ।
अमृत घोला जिसके मन में
उसका मन विष-बेल हो गया ।
धोखा देकर खिल-खिल हँसना
उन लोगों का खेल हो गया ।।
बहुत बोल चुके अब न बोलो
अपने मन की गाँठ न खोलो ।
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