1-कौन तुम ?
शशि पाधा
कौन तुम ?
चन्दन से भीगे
आँखों में रम जाते हो
कौन तुम मन- वीणा के
सोए तार बजाते हो ?
कौन तुम ?
हरित धरा को धूप ओढ़नी
तूने ही ओढ़ाई होगी
खिली खिली सी पुष्प पँखुरी
तूने ही सहलाई होगी
वायु की मीठी सिरहन में
क्या तुम ही मिलने आते हो ?
कौन तुम ओस कणों में
मोती सा मुस्काते हो
कौन तुम ?
मन दर्पण में झाँकके देखूँ
तेरा ही तो रूप सजा है
नयन ताल में झिलमिल करता
तेरा ही प्रतिबिम्ब जड़ा है
मेरा यह एकाकी मन
क्या तुम ही आ बहलाते हो?
कौन तुम रातों के प्रहरी
जुगनु सा जल जाते हो
कौन तुम ?
रंग तेरे की चुनरी प्रियतम
बारम्बार रंगाई मैंने
पथ मेरा तू भूल न जाए
नयन ज्योत जलाई मैंने
कभी-कभी द्वारे पे आ
क्या तुम ही लौट के जाते हो?
कौन तुम अवचेतन मन में
स्पंदन बन कुछ गाते हो
कौन तुम ?
ऐसे तुम को बाँधूँ मैं
इस बार जो आओ लौट न पाओ
बंद करूँ नैनों के द्वारे
चाह कर भी तुम खोल न पाओ
अनजानी सी इक मूरत बन
क्या तुम ही मुझे सताते हो?
कौन तुम पलकों में सिमटे
सपनों सा सज जाते हो
कौन तुम ?
डॉ.सिम्मी भाटिया
किसको है
एहसास
कौन है वो
जिसको दिखाऊँ
अपने जख्म
अंदर ही अंदर घुट
गमों को छुपाऊँ
आने ना दूँ
आँसू
हौले- से मुस्कुराऊँ
दम तोड़ रही
ख्वाहिशें
साँसें रुक ना जाएँ
हो कोई ऐसा
देख
जिसको जी जाऊँ
स्पर्श मात्र से
ऐसे खिल जाऊँ
मंत्र मुग्ध हो जाऊँ
उसकी
मीठी बातों में
उलझी ऐसी
उसके ताने -बानों में
देख सके जो मेरा ग़म
कह सके जो है मेरे संग
कौन है वो
जिसको दिखाऊँ
अपने जख्म
किसको है
एहसास।