पथ के साथी

Sunday, November 15, 2020

1031-स्वर संगम

 1- नयन तेरे दर्शन को तरसें- डॉ. अमिता कौंडल


गोविंदा गोविंदा, नयन तेरे दर्शन को तरसें
गोविंदा गोविंदा, नयन तेरे दर्शन को तरसें
कब आएगा तू रे,नयन तेरे दर्शन को तरसें
गोविंदा गोविंदा, नयन तेरे दर्शन को तरसें

मैं दूध भी लाई, माखन भी लायी रे .....2
कब भोग लगाएगा, नयन तेरे दर्शन को तरसे
गोविंदा गोविंदा, नयन तेरे दर्शन को तरसें…2
कब आएगा तूँ रे,नयन तेरे दर्शन को तरसें…2

गोपियाँ भी आईं झूले भी डाले रे .....2
कब रास रचाएगा, नयन तेरे दर्शन को तरसे
गोविन्दा....2

मटकी लेकर के, मैं यमुना तीरे बैठी रे .....2
कब कंकर मारेगा, नयन तेरे दर्शन को तरसे
गोविन्दा .....2

भोर भई, फिर साँझ ढ़ली अब रैन हुई है रे .....2
कब मुरली बजाएगा नयन तेरे दर्शन को तरसें
गोविंदा गोविंदा, नयन तेरे दर्शन को तरसें…2
कब आएगा तू रे,नयन तेरे दर्शन को तरसें---2
गोविंदा गोविंदा, नयन तेरे दर्शन को तरसें---2
-0-

 2-हम ना होंगे जब आँगन में- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु '

तीन-मुक्तक

1
भोर हुए जो सूरज निकला, उसको तो ढल जाना है।
माटी की नौका ले निकले,उसको तो गल जाना है।।
धूल- बवंडर आँधी-पानी, सब तो पथ में आएँगे।
इनसे होकर चलते जाना, हमने मन में ठाना है।।
2
हम ना होंगे जब आँगन में,तब सन्नाटा डोलेगा।
चुप्पी में कितनी बातें हैं, राज़ नहीं वह खोलेगा।
सिर्फ़ दुआएँ पास रही हैं,किसने पाया -खोया है।
यह तो जाने ऊपर वाला,पर वह कभी न बोलेगा।।
3

शान से आगे बढ़ो तुम कि हर  कल तुम्हारा है
जाह्नवी तुम ही  हो  मुझमें जो जल तुम्हारा है।
पथ तुम्हारा कंटकों का संग में  चलना मुझे
सुमन खिलाने हैं जहाँ तक आँचल तुम्हारा है।  

 

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2-याद आया- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु '

 

चुभा जो नश्तर याद आया

टूटा हुआ दर याद आया

याद आया चहकता बच्चा

छूटा हुआ घर याद आया

रात भर नींद न आई हमें

हर दफ़ा पत्थर याद आया

याद आए तुम, छल तुम्हारे

काँटों का सफर याद आया

शब्द जहाँ खिले फूलों जैसे

मुझे वह दफ्तर याद आया

साया तक भटका रातों में

मुझे हर मंज़र याद आया

अश्कों में डूब गई रातें 

 जब मुझे सागर याद आया

आँख खुली तो टूटे सपने

छल भरा बिस्तर याद आया

चाँद पर जीभर जो थूकते

उन्हें कब यह डर याद आया।

 जब गुनाह छुपाने को कभी

चलाया खंज़र याद आया

 

3- दूर सभी को जाना है- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु '


जीवन बुदबुद जल का है
किसे भरोसा कल का है।
दूर सभी को जाना है
कुछ खोना कुछ पाना है।
दूर नगरिया जाएँगे
याद नहीं हम आएँगे।
मोह पाश जो पाया है
यह जन्मों की माया है।
जब तक साँसें  जीना है
जीवन का रस पीना है।
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4-रौशनी

मैं अँधेरा नहीं,रौशनी हूँ तुम्हारी
हारो ना हिम्मत,तुम ज़िंदगी हमारी।

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कविता-पाठ-तेरह रंगों में रँगी, कविता की एक शाम

 संचालन - मानोशी चटर्जी, अम्बिका शर्मा ,कनिका वर्मा,संदीप कुमार त्यागी,प्रीति अग्रवाल,लता पांडे,

डॉ कुमार भारती,डॉ रेणुका शर्मा,पूनम चंद्रा ’मनु’, सविता अग्रवाल,इंदिरा वर्मा,अखिल भंडारी,आशा बर्मन

मानोशी चटर्जी 

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तेरह रंगों में रँगी, कविता की एक शाम