पथ के साथी
Sunday, September 2, 2018
643-डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
क्षणिकाएँ
डॉ.सुरेन्द्र वर्मा 
1
घटता बढ़ता
रहता है 
चाँद 
टूटते तो बस 
सितारे ही
हैं। 
2
वही गीत 
फिर से गाओ 
कि नींद आ
जाए।
3
चिड़ियों के
कलरव से 
पत्तियाँ
हिलती हैं
आओ, मेरी डाल
पर बैठो।
4
यह दर्द है 
शरीर का रक्त
नहीं,  
जो चोट खाकर 
बाहर आ जाए ।
5
कौन नहीं है 
जो नहीं
उठाता 
लाचारी का
फ़ायदा 
बस लाचार के
ही 
बस का नहीं
है।
6
अभी तो बच्चा
है 
हाथ थाम कर
चलता है 
चलना सीख ले 
फिर रुकता
नहीं प्यार।
7
तुम तो चली
गईं 
लेकिन यादों
की महक 
यहीं कहीं 
मँडराती रहती
है 
आसपास 
8
जो चला गया 
लौटता नहीं 
जो लौट आया 
गया ही कहाँ
था !
9
यादें –
कहीं बुझ न
जाएँ
ले लिया करो 
कभी उनकी भी
सुध ।
10
खुशगवार है
खुशबू 
फूल को डाल
पर ही 
इतराने दो।
11
मैं मौन रहा 
लेकिन शब्द
गूँजते रहे 
कविता में
बनकर 
कागज़ पर
उतरते रहे।
-0-१०, एच आई जी / १,सर्कुलर
रोड ,इलाहाबाद -२११००१  
-मो.
९६२१२२२७७८
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