डॉ० कविता भट्ट
प्रिय! यदि तुम पास होते!
अगणित आशा–पत्रों से लदा,
प्रफुल्ल कल्पतरु जीवन सदा,
पतझर भी सुवासित मधुमास होते,
प्रिय! यदि तुम पास होते!
झर–झर प्रेम बरखा बरसती,
बूँद– बूँद न कोंपल तरसती,
झूमती असंख्य मृदुल
कलियाँ,
कामना के उल्लास होते!
प्रिय! यदि
तुम पास होते!
पुष्पगुच्छों के अधर पर,
कुछ तितलियाँ व कुछ भ्रमर,
रंग–स्वर लहरियों के सहवास होते
प्रिय! यदि
तुम पास होते!
ये रातें– झिंगुरों की गान हैं जो,
शैलनद -ध्वनियों की तान हैं जो,
आलिंगनबद्ध धरा–आकाश होते,
प्रिय! यदि तुम पास होते!
जहाँ चिन्तन है, वहाँ आनन्द
होता!
सरस हृदय-भाव–सिन्धु स्वच्छन्द होता!
प्रिय!
यदि तुम पास होते!
पल–दिवस संघर्ष न होते,
आह्लादों के प्रसार होते।
सुवास भीगी , कामना के प्रश्वास होते।
प्रिय! यदि तुम पास होते!
धड़कन–स्वर संत्रास न होते,
चूर–चूर सब अवसाद होते।
तरु–झुरमुट, मधुर–तानें, व रास होते
प्रिय! यदि तुम पास होते!
अविच्छिन्न आयाम निरन्तर साकार होते,
रेखाएँ–सीमाएँ और दिशान्तर लाचार होते।
अन्तहीन कल्पनाओं को; विराम
के आभास होते
प्रिय! यदि तुम पास होते!
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दर्शनशास्त्र विभाग, हे०न०ब०गढ़वाल
केन्द्रीय विश्वविद्यालय
श्रीनगर गढ़वाल(उत्तराखण्ड)