पथ के साथी

Tuesday, April 21, 2020

975-बहुत बोल चुके [ मेरी पुरानी कविता]



रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

बहुत बोल चुके, अब न बोलो
अपने मन की गाँठ न खोलो।

गाँठ खोलकर अब तक तुमने
जितना भी था, सभी गँवाया।
मेरे यार ज़रा बतला दो
बदले में तुमने क्या पाया ?

बहुत तोल चुके, अब न तोलो
जिसको अब तक तुमने तोला
उन सबको पाया है पोला
वार किया उसने ही छुपकर
जिसको तुमने समझा भोला।

अब सबके मन अमृत न घोलो
अमृत घोला,  जिनके मन में
उनका मन विषबेल हो गया।
धोखा देकर, खिल-खिल हँसना
उन लोगों का खेल हो गया।

बहुत बोल चुके, अब न बोलो
अपने मन की गाँठ न खोलो।