पथ के साथी

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Tuesday, October 16, 2018

853-एक दीपक तुम जलाना


रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

काल की गहरी निशा है
दर्द भीगी हर दिशा है।
साथ तुम मेरा निभाना
नहीं पथ में छोड़ जाना।
छोड़ दे जब साथ दुनिया
कंठ  से मुझको लगाना
एक दीपक तुम जलाना।।

गहन है मन का अँधेरा
दूर मीलों है सवेरा।
कारवाँ  लूटा किसी ने
नफ़रतों ने प्यार घेरा ।
यहाँ अंधों के  नगर  में   
क्या इन्हें दर्पण दिखाना।
एक दीपक तुम जलाना।।

एक अकेली स्फुलिंग थी
दावानल बन वह फैली।
थी ऋचा -सी पूत धारा
ईर्ष्या-तपी,  हुई मैली।
कालरात्रि का  है पहरा
ज्योति बनकर पथ दिखाना।
एक दीपक तुम जलाना।।  
-०-

Wednesday, February 1, 2017

706



1-कुण्डलियाँ-अनिता ललित 
1
अर्पित भाव-सुमन तुझे, है माँ तुझे प्रणाम
नयनन छवि तेरी बसी, होठों पर है नाम
होठों पर है नाम, करूँ विनती बस इतनी
आखर-आखर गढ़ूँ, पीर हर दिल हो जितनी
तेरा हो आशीष, रहे हर तन-मन हर्षित
देना ज्ञान का दान, तुझे मन-गागर अर्पित ||
2
छाई सरसों की महक, बाजे मन के तार
धरा आज मुस्का रही, करे पीत-सिंगार
करे पीत-सिंगार, गगन भी है हर्षाया
धरा-मिलन को आज, पहनकर किरणें आया,
चला शरद मुख मोड़, विदा की बेला आई
द्वार खड़े हेमंत, ख़ुशी कलियों पर छाई ||
-0-
2-गीत- मंजूषा मन

आज मन कुछ अनमना है
गीत गाओ...
आँख से दरिया बहा है
गीत गाओ...

भूल बैठे वो अगर तो
भी भला है,
ज़िन्दगी से अब हमें भी
क्यों गिला है।
एक अपने ने छला है
गीत गाओ....
आज मन कुछ....

बात दिल की कौन समझे
अब यहाँ पर,
खूब रोहैं तुझे हम
आजमाकर।
दर्द का रिश्ता बना है
गीत गाओ।
आज मन  कुछ.....

आज मन कुछ अनमना है
गीत गाओ,
आँख से दरिया बहा है
गीत गाओ।
-0-

Monday, October 31, 2016

684



गीत
सुनीता काम्बोज
चौदह वर्षों बाद राम जी,लौट अवध में आए थे
अवधवासियों ने खुश होकर ,घी के दीप जलाए थे ।

कार्तिक की अमवस्या का दिन,पावन बड़ी दिवाली है
कहते इस दिन घर आते ये ,धन वैभव खुशहाली है ।
इस दिन हरि ने नरसिंह बनकर ,सारे पाप मिटाए थे
अवधवासियों ने खुश होकर ,घी के दीप जलाए थे ।

साँझ ढले सब दीप जलाकर ,लक्ष्मी पूजन करते हैं
जगमग दीपक तम से लड़कर,अंधकार को हरते हैं ।
त्योहारों की इस खुशबू ने घर आँगन महकाए थे
अवधवासियों ने खुश होकर ,घी के दीप जलाए थे ।
गली - गली सब द्वार सजाते ,अदभुत बड़े नजारें हैं
ऐसा लगता आज धरा पर ,उतरे सभी सितारें हैं ।
छट गए अब वो  धीरे धीरे,जो घन काले छाए थे
अवधवासियों ने खुश होकर ,घी के दीप जलाए थे ।

Thursday, August 25, 2016

660



सुनीता काम्बोज

तेरी प्यास मुझको तेरी आरजू
इधर तू ही तू है, उधर तू ही तू

मेरे श्याम सुंदर मेरे साँवरे
ये नैना तुम्हारें लिए बावरे
मुझे हर घड़ी है तेरी जुस्तजू
इधर...

ये चाहत है दिल की कभी बात हो
तुम्हारी हमारी मुलाकात हो
कभी तो मिलो और करो गुफ्तगू
इधर ....
निराशा में आशा कन्हैया बने
सुनीता सदा वो खेवैया बने
बचाते रहे तुम सदा आबरू

-0-

Thursday, July 21, 2016

649



श्वेता राय के तीन गीत
भोर गीत
किरणें आकर भोर से, छेड़े मधुरित राग है।
मुदित हृदय यह देख के, गाये एक विहाग है।।

छूकर मलयागिरि पवन, खिलते सबके गात हैं।
पुलकित हो कर साथ में, हिलते सब तरू पात हैं।।
सुघर धरा के भाल पर, स्वर्णिम भोर सुहाग है।
मुदित हृदय यह देख के, गा एक विहाग है।।

पंछी के स्वर में बसी, बातें सब मन मीत की।
दूर्वा दल पर शोभती, पावस बूँदें प्रीत की।।
कण कण में बिखरा हुआ, द्रुम दल पुष्प पराग है।
मुदित हृदय यह देख कर, गाएक विहाग है।।

प्राची से जीवन जगे, जाये पश्चिम छोर तक।
प्रेम पथी बन प्रीत को, बिखरा चहुँ ओर तक।।
अलसा मन में भरे, रंगों का नित फ़ाग है।
मुदित हृदय यह देख कर, गा एक विहाग है।।

-0-
2-बरसात, याद और तुम
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रिमझिम पलछिन गिर रही, बाहर ये बरसात है।
नयनो से भी झर रही, रिमझिम दिन औ रात है।।
आकुल मन आहें भरे, व्याकुळ होते प्राण है।
तेरी सुधि बन दामिनी, लेती मेरी जान है।।

पंकिल जीवन बन गया, प्रीत कुमुद की आस में।
चुपके से करुणा हँसे, दुख के इस परिहास में।।
पुरवाई की चोट से, शिथिल पड़ा ये गात है।
यौवन का दिन ढ़ल रहा, लम्बा जीवन रात है।।

आँसू बन भाषा गअधर चढ़ा इक मौन है।
जग में अब लगता नही, मेरा अपना कौन है।।
आ जाओ प्रिय आज तुम, पा जाऊँ मुस्कान मैं।
जीवन कुसुमित बाग़ की, बन जाऊँ पहचान मैं।।

घुल जायें स्वर कोकिला, धड़कन की हर बात में।
हरियाली दिन सब लगे, झूमे चंदा रात में।।
मन मयूर बन बावरा, खुशियाँ बाँधें पाँव में।
बीते जीवन प्रेम में, प्रीत भरी मधु छाँव में।।

आ जा रे साजना, सावन की बरसात में
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3-मेरी हो पहचान तुम

खिलते हिय के बाग़ में, सुमनों की मुस्कान तुम।
सपन सलोने प्रिय सुनो, मेरी हो पहचान तुम।।

सूना मन का था सदन, आये तुम मधु चाप से।
प्रेम पुजारी बने प्रिये, स्वप्न सजे दृग आप से।।
पूजा थाली थाम लिये, बन जग से अनजान तुम।
सपन सलोने प्रिय सुनो, मेरी हो पहचान तुम।।

मन के मरूथल में बही, प्रीत भरी रसधार है।
पतझड़ बीता, बाग़ अब, भ्रमरों से गुंजार है।।
साँसो से बँध बन गए, जीवन के अब मान तुम।
सपन सलोने प्रिय सुनो, मेरी हो पहचान तुम।।

हाथों में ले हाथ प्रिये, भूली सारे भार को।
अब कब चाहूँ गूँथना, पीड़ा आँसू हार को।।
डूबती जीवन नदी मैं, तिनका सम जलयान तुम।
सपन सलोने प्रिय सुनो, मेरी हो पहचान तुम।।

-0-
श्वेता राय, विज्ञान अध्यापिका,पूर्व माध्यमिक विद्यालय
परसिया भंडारी,देवरिया,उत्तर प्रदेश
मोब 9044375683