पथ के साथी

Tuesday, November 22, 2016

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दोहावली
1-शशि पाधा
1
धूप तिजोरी बंद थी,चाबी सूरज हाथ
दोपहरी की नींद में,शीत लगाए घात
 2
अंग-अंग ठिठुरन लगी,काँपे तरुवर-नीड़
पंछी ढूँढें धूप को,उड़ते बाँधे धीर
 3
घर-घर में बँटने लगे,गुड़ तिल मेवे थाल
शाल दुशाले पूछते,इक दूजे का हाल
 4
लौटेगा किस रोज ये ,घर अपने दिनमान
पश्चिम का जादू बुरा,ठगा गया अनजान
 5
जड़वत्  पर्वत हैं  खड़े,हिम चादर  हर छोर ।
सखी सहेली धूप का,चलता ना अब जोर
 6
दिन बीते नभ देखते,रातें नीरव मौन
सूरज का संदेश ले,गा घर कौन
-0-
 2-अनिता मण्डा
1
मानवता के खून से, नित्य भरा अखबार।
हर पन्ने पर क्यूँ छपा, रिश्तों का व्यापार।।
2
मौन बने संवाद जब, मुँह खोले फिर कौन।
कहा हुआ सब मौन है, सुना हुआ सब मौन।।
3
आदर्शों की राख मल, बन बैठे सब सिद्ध।
गोश्त फँसा है दाढ़ में, देश गटकते गिद्ध।।
4
गजरे की भीनी महक़, प्रेम गीत के बंद।
प्रीत चाँदनी पर लिखे, उजले -उजले छंद।।
5
शब्दों के क्या दाँत थे, बोल गहैं काट।
कोशिश सारी उम्र की, सके न दूरी पाट।।
6
मीठे सुर देने लगा, एक खोखला बाँस।
पाई अधरों की छुअन,हुई सुरीली साँस।।
-0-
3-सुनीता काम्बोज 
1
भाई भाई कर रहे ,आपस में तकरार ।
याद किसी को भी नही , राम भरत का प्यार ।।
2
अपने मुख से जो करे , अपना ही गुणगान ।
अंदर से है खोखला , समझो वो इंसान ।।
3
नदी किनारे तोती ,आता है तूफ़ान ।
नारी नदिया एक सी, मर्यादा पहचान ।।
4
ढल जाएगा एक दिन ,रंग और ये रूप ।
शाम हुई छिपने लगी ,उजली उजली धूप ।।
5
सबको जग में चाहिए , मान और सम्मान ।
अमृत ही सब चाहते  ,कौन करे विषपान ।।
6
मौन कभी रहकर करो, जिह्वा का उपवास ।
चरना अब तो छोड़ दो, ये निंदा की घास ।।
-0-
4- डॉ सरस्वती माथुर 
1
शब्दों को माँ शारदे, तुम करना साकार,
देना मुझको प्रेरणा , होगा ये उपकार ।
2
रचनाएँ रचकर करूँ, माँ तेरा गुणगान
अपने लेखन पर करूँ ,कभी न मैं अभिमान ।
3
बेटी घर की शान है, मत मानो मेहमान ।
दो परिवारोँ बीच मेँ, होती सेतु समान॥
4
मन में दौलत प्रीत की, होती है अनमोल
साधु संत कहते तभी, मन की गठरी खोल।
5
 भारत न्यारा देश है, सब को इस से प्यार ।
धरती के इस दीप से, रौशन है संसार।
6
साजन की बरजोरियां, प्रीत-प्रेम के रंग 
भीग रही हैं गोरियां, नैना बान-अनंग ।
-0-
5-श्वेता राय
1
नयनों से संवाद में, होता ऐसा हाल
पंख लगा के मन उड़े, बिगड़े पग की चाल
2
अधर चढ़ा इक मौन हो, आँखे हों वाचाल
समझो बंधन तोड़ के, मन ने बदली चाल
।।
3
यादें उनकी मल रहीं, मुझको रंग गुलाल
बातें जिनकी सुन खिले, बगिया टेशू लाल
।।
4
धन धन धन की चाह में, भूले राग विहाग
प्रेम रतन धन यदि मिले, जीवन गा फाग
।।
5
सूख रही मन की धरा, व्याकुल होते प्राण
आके प्रिय अब शीघ्र ही, बिखराओ मुस्कान
।।
6
प्रिये! तुम्हारे दरस से, हिय उठ रही  तरंग
जीवन में अब छा गए, इन्द्रधनुष  के  रंग
।।
-0-विज्ञान अध्यापिका,देवरिया,उत्तर प्रदेश-274001
-0-
6-डॉ.पूर्णिमा राय
1
 भोर सुहानी हो गई,मन के पट तू खोल।
फैला स्वर्णिम नूर है, मिश्री सा रस घोल।।
2
छोटी-छोटी बात का ,सभी करें संज्ञान।
सदाचार ताबीज़ से ,नें सभी विद्वान।।
3
बूढ़ा पीपल कह रहा,सुन लो मेरी बात।
ईश समझकर पूजना,तुम सब अपना तात।।
4
औरों का सुख देखकर, रोते रहते लोग।
बेमतलब चिन्ता करें, पाएँ अनगिन रोग।।
5
भेंट हवन में जो करें, जीवन भर के पाप।
मीरां जैसी लग्न हो ,कृष्ण हरें संताप।।
6
आँखें प्रिय की हैंहै कहें, मन के नाजुक भाव।
चार दिवस की जिन्दगी,रखना सदा लगाव।।
-0-
7-शशि पुरवार  , पुणे महाराष्ट्र 
1
भोर स्वप्न वह देखकर, भोरी हुई विभोर
फूलों का मकरंद पी , भौरा है चितचोर
2
भोर सुहानी आ गई ,लिये टमाटर लाल
धरती रक्तिम हो गयी ,देख गुलाबी थाल।
3
घिरा हुआ है मेघ से ,सूरज का रंग - रूप
रही स्वर्ण किरणें मचल, कैसे बिखरे धूप
4
बिन माँगे खुशियाँ सभी, आएँगी घर द्वार
लुटती माया,सुख नहीं, दुख के दिन है चार .
5
उपजे माटी से यहाँ, जग के सारे लाल
मोल न माटी का करे, दिल में यही मलाल।
6
सबसे कहे पुकार के, यह वसुधा दिन रात
जितनी कम वन सम्पदा , उतनी कम बरसात
-0-
8-मंजू गुप्ता 
1
शुभकर पूनम -  चाँदनीं, बरसे मन के द्वार
प्रेम बढ़ाने आ गया , रक्षा का त्योहार
2
 रँगतीं स्नेहिल राखियाँ  , दिल  का रेगिस्तान .
 है हर तार विशेष जो  , बाँधे हिन्दुस्तान
3
नेह तार ही बहन का  , भाई को उपहार
इससे बढ़कर कुछ नहीं , फीका हीरक हार
4
राखी पावन प्रेम की , वादे  - रस्म  अटूट
 बंधन  है यह नेह का   , कहीं   न जाए  टूट 
-0-
9-कमला घटाऔरा
1
अमन शांति की चाह यदि , कर सब का सत्कार ।
दु:ख सुख में साथी बनों , बाँटो सब में प्यार ।
2
साथी जब हो नाम के , बँधे नहीं विश्वास ।
छल कपट जिसने किया ,रहो न उनके पास ।
-0-