पथ के साथी

Monday, September 26, 2016

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1-कमल कपूर की कविताएँ
1-तुम
तुम सूर्य की पहली किरण हो,ओस-बिन्दु प्रभात की
साँझ की हो लालिमा,और चाँदनी हो रात की।

छू सबा को जो खिली, तुम हो वह कोमल कली
भ्रमर ने चूमा है मुखड़ा,पवन-पलने में हो पली।

भोर का पहला हो पाखी,जो जगाए सृष्टि को
हो सुंदरता की वह प्रतिमा,जो लुभाए दृष्टि को।

पुण्य सलिला मंदाकिनी की उत्तंग एक तरंग हो
गंगा सागर से मिलन की उमंग भरी तरंग हो।

मलयाचल से चल कर आई, तुम वह चन्दन-गंध हो
तितलियों की हो चपलता, सरस सुमन सुगंध हो।

सुर ताल लय और रागिनी हो,गीत भी संगीत भी।

सावन की पहली हो बरखा,वासंती परी मधुमास की
भावना हो कामना हो,आस भी औ विश्वास भी।

वाग्देवी की हो वीणा, हो कान्हा जी की बाँसुरी ,
आत्मा हो राधिका की और हो तुम मीरा बावरी।

कबीर की हो साखियाँ और तुलसी की चौपाई हो
मीर गालिब की गज़ल हो खय्याम की रुबाई हो।

मंदिर की हो दीपिका और हो साधक की साधना
हृदय में उपजी दुआ हो ,होठों पर जन्मी प्रार्थाना।

निर्झर सी कभी मुखर ,कभी रहस्यमय मौन हो
क्या दूँ परिचय मैं तुम्हारा, क्या कहूँ तुम कौन हो।

ब्रह्मा की सर्वोत्तम रचना,नारी का सौम्य रूप हो
ग्रीष्म में ठंडी पवन  और जाड़े में कच्ची धूप हो।

अवनि अंबर और अंबु, अनिल हो और अनल हो
देव-चरणों में समर्पित पूर्ण विकसित कमल हो।
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2: यदि...

न करूँगी मैं किसी राम की ठोकर का इंतज़ार
हूँ अहल्या अपने हाथों ही करुँ अपना उद्धार।

हे राघव! न डालना सिया को किसी इम्तेहान में
न दूँगी परीक्षा औ कहूँगी पहले झांको गिरेबान में।

नहीं लौटना तो न लौटो हे श्याम अब ब्रजधाम को
टाँकती अब राधिका भी प्रतीक्षा पे पूर्णविराम को।

किसी अर्जुन में न साहस कि पाँच हिस्सों में बाँटे
रखे याद कि फूल- संग होते हैं अब बहुत से काँटे।

यूँ तजकर जा सकते नहीं पत्नी सुत को हे सिद्धार्थ
या तो होगा लौटना या ले जाना होगा हमें भी साथ।

सप्तपदी के भूल वचन मुख मोड़ गये हो हे तुलसी
तो देख लो रत्नावली मैं विरहाग्नि में नहीं झुलसी।

उर्मिला मैं लखन हेतु अब अश्रू नहीं बहा रही
अपने लिये एक नवल कर्मक्षेत्र हूँ बना रही।

ये सकल ही देवियाँ जो आ जाएँ धरा पे नारी भेष में
तो यकीनन यही कहेंगी आज के नूतन परिवेश में।
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कमल कपूर,२१४४ / ९ सेक्टर, फरीदाबाद-१२१००६, हरियाणा
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