पथ के साथी

Friday, June 15, 2018

828-मधु की आस


1-मधु की आस
डॉ.कविता भट्ट
अधर छूकर भी कंठ न कभी सींच सका,
उसी प्याले से मुझे मधु की आस रही
वो मुझमें खोजता रहा हर पल देवी,
मुझे उसमें बस इंसाँ की तलाश रही
मेरे भीतर रहकर भी जो साथ न था
मेरी धड़कन उसी के आस -पास रही
मुस्कुराने के सौ बहाने दुनिया में
फिर भी नम हुई आँखें , मैं उदास रही

-0-
2- ज़िन्दगी 
   प्रियंका गुप्ता 

ज़िन्दगी
कोई ख़त नहीं होती
जिसे 
किसी एक के नाम लिखा जाए
ज़िन्दगी तो इक किताब है
अनगिनत पन्नों वाली
बस पलटते जाना; 
जब लगे
कहानी ख़त्म है
जोड़ देना उसमें
कुछ नए सफ़े
हर्फ़-- हर्फ़
लफ्ज़ -- लफ्ज़
बढ़ती जाती है कहानी
नए नए पात्रों के साथ;
सुनो!
ज़िन्दगी को बस पढ़ते जाना
जब तक कि
कहानी अपने अंजाम तक न पहुँचे ।
-0-
 (सभी चित्र गूगल से साभार )

Thursday, June 7, 2018

827-चुटकी भर संवेदना…


चुटकी भर संवेदना…
मंजु मिश्रा  ( कैलीफोर्निया)

हो सके तो खुद को इंसान बनाए रखिए
चुटकी भर संवेदना दिल में बचाए रखिए
**
यूँ तो ये, आज के दौर में ज़रा मुश्किल है
तो भी क्या हर्ज़ है खुद को आजमाए रहिए 
**
आज कल हालात हद  से  बदतर है
हर आस्तीं में सांप बगल में खंजर है
**
क्या पता कौन कहाँ दुश्मन निकल आए
खुद को हर वक्त, पहरे पे लगाए रखिए
 -०-

Wednesday, June 6, 2018

826-भोर के उद्गार


भोर के उद्गार
कमला निखुर्पा


मीलों दूर रहकर भी
भावसिंचित
नव सृजन पल्लवों से आँगन अंकुरित
वो मेघ हो तुम।

महक अपनेपन की
सोंधी-सोंधी -सी
जड़ों से जुड़ी है
अभी तक
संस्कारों की माटी
वो माली हो तुम ।

लेना कुछ भी नहीं
जाना बस
देना ही देना
पत्थर भी मारे कोई
तो पाता सुफल
वो वृक्ष रसाल हो तुम।

जो भी हो तुम
जानूँ मैं बस इतना ही
कि विगत जन्मों के
पुण्य फल हो तुम ।
नित जलकर
जगमग राहें कर  जाए
वो दीपक हो तुम ।
-०-

Tuesday, June 5, 2018

825-खड़े जहाँ पर ठूँठ


 रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

खड़े जहाँ पर ठूँठ
कभी यहाँ
पेड़ हुआ करते थे।
सूखी तपती
इस घाटी में कभी
झरने झरते थे ।
छाया के
बैरी थे लाखों
लम्पट ठेकेदार ,
मिली-भगत सब
लील गई थी
नदियाँ पानीदार ।
अब है सूखी झील
कभी यहाँ
पनडुब्बा तिरते थे ।
बदल गए हैं
मौसम सारे
खा-खा करके मार
धूल -बवण्डर
सिर पर ढोकर
हवा हुई बदकार
सूखे कुएँ ,
 बावड़ी सूखी
जहाँ पानी भरते थे ।

-0-


Saturday, June 2, 2018

824-जीवन हरसिंगार


डॉ कविता भट्ट
1
आज रजनीगंधा ने, उड़ेला सारा प्यार
साँसें महकीं प्रियतम-सी,जीवन हरसिंगार
2
तुम आते तो अच्छा होता, खुल जाते सभी कपाट।
लेकिन जाने की चिंता में ,मन-सागर हुआ उचाट।
3
साँसों का आना-जाना प्रिय,ईश्वर का वरदान ।
नागफनी- सा चुभे है तुम बिन, जीवन का प्रतिदान

4
उपकृत कर गए हमको ,तेरे नैनों के संवाद।
स्वयं ही बोलें, सुनें स्वयं, कोई ना वाद  विवाद

5
आपका आना चंदन-सा,
मधुऋतु के  मधु अभिनंदन-सा
प्रतिपल यों ही बीते सदा,
रति के  मनोज को वन्दन-सा
-०-
[31/05/18-9.58 अप.]
(चित्र :गूगल से साभार )