1-मधु की आस
डॉ.कविता भट्ट
अधर छूकर भी कंठ न कभी सींच सका,
उसी प्याले से मुझे मधु की आस रही ।
वो मुझमें खोजता रहा हर पल देवी,
मुझे उसमें बस इंसाँ
की तलाश रही ।
मेरे भीतर रहकर भी जो साथ न था
मेरी धड़कन उसी के आस -पास
रही ।
मुस्कुराने के सौ बहाने दुनिया में
फिर भी नम हुई आँखें , मैं उदास रही ।
-0-
2- ज़िन्दगी
प्रियंका गुप्ता
ज़िन्दगी
कोई ख़त नहीं होती
जिसे
किसी एक के नाम लिखा जाए
अनगिनत पन्नों वाली
बस पलटते जाना;
जब लगे
कहानी ख़त्म है
जोड़ देना उसमें
कुछ नए सफ़े
हर्फ़- ब- हर्फ़
लफ्ज़ -ब- लफ्ज़
बढ़ती जाती है कहानी
नए नए पात्रों के साथ;
सुनो!
ज़िन्दगी को बस पढ़ते जाना
जब तक कि
कहानी अपने अंजाम तक न पहुँचे ।
-0-
(सभी चित्र गूगल से साभार )