पथ के साथी

Wednesday, September 23, 2020

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1-रमेशराज

1


हर तन अब तो जलता
है 

मोम -सरीखा गलता है ।

 

दिन अनुबंधित अंधकार से 

सूरज कहाँ निकलता है ।

 

अब गुलाब भी इस माटी में 

कहाँ फूलता-फलता है ।

 

देनी है, तो अब रोटी दे 

नारों से क्यों छलता है ।

 

यह ज़मीन कैसी ज़मीन है 

सबका पाँव फिसलता है ।

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2

फूल-सा मुख को बनाना पड़ गया

जिस जगह पर चीखना था, मुस्कराना पड़ गया।

 

वो न कोई राम था, बदनाम था

पर हमें दिल चीरकर उसको दिखाना पड़ गया।

 

हम अहिंसा के पुजारी थे अतः

क़ातिलों के सामने सर को झुकाना पड़ गया।

 

हम गुलाबों के लि तरसे बहुत

कैक्टस में किन्तु गन्धी मन रमाना पड़ गया।

3

तुम पानी से, हम पानी से 

साँसों की सरगम पानी से ।

 

पानी बिन सूखा ही सूखा 

हरा-भरा मौसम पानी से ।

 

पानी से नदियों में कल-कल 

बूँदों की छम-छम पानी से ।

 

बिन पानी के बीज न उगता 

मिट्टी रहती नम पानी से ।

 

बादल बरसे अगर धरा पर 

आ जाता है दम पानी से ।

 

हरा-भरा करता खेतों को 

पानी का संगम पानी से ।

 

पानी से मिलती है ‘ओटू’

पाते जीव रहम पानी से ।

 

जल से यमुना, जल से गंगा 

झेलम भी झेलम पानी से ।

 

पानी से ही शंख-सीपियाँ 

शैवालों में दम पानी से ।

 

जल से ही मछली का जीवन 

जीवन का परचम पानी से ।

 

सूखी रोटी गले न उतरे 

होती सदा हम पानी से ।

 

पोखर झील जलाशय झरने 

इनमें लौटे दम पानी से ।

 

सूखे हुए कंठ में जल तो 

हट जाता मातम पानी से ।

 

बिन पानी के जीवन सूना 

पाते जीवन हम पानी से ।

 

खेत सूखता देख कृषक की 

आँखें होतीं नम पानी से ।

 

पानी होता जैसे अमृत 

मिट जाता हर गम पानी से ।

 

व्यर्थ न फैलाओ पानी को 

काम चलाओ कम पानी से ।

 

करना सीखो जल का संचय 

पाओ तभी रहम पानी से ।

 

पानी है अनमोल धरा पर 

तुम पानी से, हम पानी से ।

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4

सूखे का कोई हल देगा 

मत सोचो बादल जल देगा ।

 

जो वृक्ष सियासत ने रोपा 

ये नहीं किसी को फल देगा ।

 

बस यही सोचते अब रहिए

वो सबको राहत कल देगा ।

 

ये दौर सभी को चोर बना 

सबके मुख कालिख मल देगा ।

 

वो अगर सवालों बीच घिरा 

मुद्दे को तुरत बदल देगा ।

 

उसने हर जेब कतर डाली 

वो बेकल को क्या कल देगा ।

-0-15/109 ईसानगर, निकट थाना सासनी गेट,अलीगढ़-202001     

मोबा-9634551630

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नवलेखन

2-खुशी रहेजा

 


कौन थी वो

न जाने कौन थी वो?”

चाँदनी -सा रूप,सर्दियों की धूप थी वो।

बिन पढ़ी किताब,अन-चखी शराब थी वो।

प्यार की प्यासी,देखने में थी हसीन

हर नज़र की चाह, थोड़ी गर्म,सर्द सी थी वो।

शायरों का ख़्वा, सबसे लाजवाब थी वो।

रूप की मशाल,बड़ा कठिन सवाल थी वो।

आँधियाँ उड़ा गई, बिजलियाँ गिरा ग वो।

ज़रा होठ जो हिल उठे,कई गुलाब खिला ग वो।

दवा भी, दुआ भी,श्याम की बाँसुरी-सी थी वो।

देखते-ही सिमट गई,लाज से लिपट गयी वो।

मौन खड़ी थी,न जाने कौन थी वो??

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