अंजू खरबंदा
रोटी -1
अक्सर जल
जाती है
मेंरे हिस्से
की रोटी
सबको गर्म
गर्म खिलाने
की चाहत
में
अपनी बारी
आते आते
तक
शुरू कर देती हूँ समेटा समेटी
इस चक्कर
में तवे
पर पड़ी
मेंरे हिस्से
की रोटी
जल जाती
है अक्सर!
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रोटी-2
तरसती हूँ
गर्म रोटी
को
सबको खिलाते
खिलाते
आखिरी नम्बर
आते आते
ठंडी हो
जाती है
मेंरे हिस्से
की रोटी!
मायके जाने
पर
भाभी खिलाती
है
अपने हाथों
से बनाकर
गर्म गर्म
रोटी
उनको भी
पता है
बिन माँ
की बेटी
गर्म रोटी
में ढूँढती है
माँ का
प्यार!
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रोटी -3
चन्दा मामा
गोल गोल
मम्मी की
रोटी गोल
गोल
बचपन में
पढ़ी ये
कविता
अक्सर याद
आती है
पर मुझसे
नहीं बनती
गोल रोटी
!
मुझे रोटी
बनाना सिखाने
से
पहले ही
माँ चली
गईं!
-0-
अंजू खरबंदा ,दिल्ली