जन्म दिवस  पर  ही प्रश्न है
डॉ. कविता भट्ट
श्रीनगर (गढ़वाल) उत्तराखंड
आज फिर  से बधाई-शुभकामनाओं का शोर चला है  
घोषणा, भाषण,भीड़ और पुष्पगुच्छ का दौर
चला है  
जन्म दिवस  पर खड़ा प्रश्न हैं  
विकल सत्ता के घर जश्न हैं
केवल  झुनझुनों
में घिरा है
कब सँभला ,जो  आज गिरा है
तार-तार उत्तर का आँचल, कहाँ इसका छोर चला है 
चोट और झटकों पर झटके, हर आँसू झकझोर चला है ।
पहाड़ियों के दुखी नगर को 
चढ़ती उतरती इस डगर को
अब कुछ समझ आता नहीं है
कोई सपन भाता नहीं  है
 पोथी-रोटी-दवा न मिली, ये जाने किस ओर चला है 
 नशे के  अँधियारे में,
छोड़  ये उजली भोर चला है   । 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
