पथ के साथी

Monday, August 19, 2013

सावनी हाइकु


नीला नभ .. दूर क्षितिज पर  आँचल लहराती चली आ रही  मेघा रानी ,  पेड़ों के पीछे छुपा है नटखट पवन... अरे ये तो मेघा रानी को दौड़ा रहा है ...ये क्या दौड़ते - दौड़ते मेघारानी  तो नकचढ़ी बिजली से टकरा गई... उफ़ गगरी फूट गई और झर- झर  गिरने लगे सावनी हाइकु   
 कमला निखुर्पा 
1
हवा   दौड़ाए 
भागी भागी फिरे है 
मेघा पगली।
2
गिरी धम से 
टकराई बिजली 
फूटी गागर।
3
चूनर हरी 
भीगी वसुंधरा की 
सिहर उठी
4
मुख निहारे
निर्मल  नीली  झील 
बनी दर्पण।
5
पावस रानी 
टिप टिप बजाए 
जल तरंग । 
6
झूमे रे तरु 
पपीहरा गाए है 
नाचे है मोर।
-0-

१९ अगस्त २०१३