पथ के साथी

Wednesday, June 10, 2020

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1-डॉ. सुधा गुप्ता
-एक क़ाफ़िला : नन्ही नौकाओं का ( काव्य-संग्रह,मई 1983)


1- तिनका

न जाने
कौन-सी कुघड़ी
मेरी
आँख में  तिनका पड़ा
कि
ज़िन्दगी भर
पानी बहना नहीं रुका।

तकलीफ़ , पल दो पल साथ रहे:
बहुत तड़पाती है।
ज़िन्दगी भर का साथ हो:
आदत बन जाती है
एक सीमा है
जिसे पार कर
हार अभिव्यक्ति गूँगी हो जाती है
रोता है मन बिना शब्द किए
आँख बिना कोई उलाहना दिये
आँसू बहाती है


न जाने कौन-सी कुबेला
तुमनए
मेरे मन की अँगूठी, ये अमोल रतन-जड़ा
जिसे
खोने के डर से,
आँख का लगना चुका सो चुका।
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चुराकर
खिसक गया
क़ीमती सपनों की पिटारी
मन के सन्दूक से,
दीवानी ख़्वाहिशें
सिर धुनतीं,
बिलखतीं
बाल खोले
घूमती रहती हैं
उम्र के ख़ाली कमरों में
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3-अनमनी शाम

अजनबी शाम
मेरी आँखों में
तुम्हारी याद का काजल
आँज,
सिरहाने
तुम्हारे गीतों का गंगाजल
रख,
दबे पाँव चली गई
कि
शायद
सो सकूँ थोड़ी देर ।

कोरा काजल किरकिराता रहा,
गीतों का जल
तकिया भिगोता रहा,
न पूछो
कैसे कटी रात ।
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4-तपिश और आग

दिल के आतिशदान में
चटखती यादो !
तपिश तो ठीक है, सही जाएगी।
उफ़ ! आग ऐसी !
मत बनों बेरहम इतनी
मेरी तो दुनिया जल ही जाएगी !
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5-सफ़र

सफ़र:
एक ओर ऊँची चट्टानें
दूसरी ओर
भयंकर खाइयाँ।
दूर-दूर तक ख़ौफ़नाक अँधेरे
और डरावनी परछाइयाँ।
कितना झिड़का था
तुम्हें मन !
मत चलो मेरे साथ !!
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2-मुक्तक 

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
10/6/ 2020
दुनिया घिरी हुई संकट में, छाया  तन-मन पर अँधियारा ।
आँसू का दरिया उमड़ा है, लगता छूटा आज किनारा ।
मैं प्रभु तुझसे इतना  माँगूँ, तू जग को केवल सुख देना ।
सारे दुख मुझको देकरके इस जग को देना उजियारा
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