1-स्वप्न-पुष्प
अनिता मंडा
नित्य उगते सूरज के
साथ पकाती रही
सोने -सी रोटियाँ
नित्य रिक्त होता रहा
कुएँ
जैसा पेट
फिर भी कभी उफ़ तक
नहीं आई होंठों पर
आग पर रोटियाँ सेकती
कभी भयभीत नहीं हुई
आग से
पर बाक़ी थी अभी भी
अग्निपरीक्षा
पंख जलाने के लिए
मन की उड़ानें बेपर हो
गई।
स्वप्न-राख का भभूत
तुम
माथे तो लगा सकते हो
जीवित भी कर सकोगे
स्वप्न-पुष्प
जिनका मधुर पराग
मधु बन जाता।
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2-रश्मि विभा त्रिपाठी