1-आपसे
अर्ज है
सुभाष लखेड़ा
सुनिए ! आपसे एक अर्ज है
ऐसा कहना मेरा फ़र्ज़ है
क्योंकि है मेरी चाह
आज से चलें नई राह
दिखे जो सामने
उसे आप दीजिए
एक ऐसी सौगात
जो खरीदनी नहीं है
न आपको जाना कहीं है
रहे आपके पास दिन - रात
आप उसे दें सिर्फ एक प्यारी -सी मुस्कान
आप यदि ऐसा करेंगे
यकीन करें, खुशियों से
महक उठेगा हम सभी का हिदुस्तान।
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2-काश !
कृष्णा वर्मा
कितने सुहाने मस्ती
भरे अभ्रक- से
चमकीले दिन थे बचपन
के
छोटी-छोटी
चीज़ें बड़ी-बड़ी खुशियाँ
हल्के-फुलके
बस्ते भारी ज्ञान
संस्कारों की छाँव
तले ठुमकता था
आनन्द ही आनन्द चहुँ ओर
बस्ते में होती थीं
केवल
दो किताबें दो
कापियाँ
एक पक्के और एक
कच्चे काम की
एक टीन की रंग-बिरंगी
आयताकार डिबिया
या यूँ कहें कि
पेंसिलदानी
उसमे एक आधी
और एक पूरी नई पेंसिल
और गढ़ने को एक शार्पनर
दो रबड़ एक इत्र से भरा
खुशबूदार
और एक सादे रंग का
कितनी खुशी बाँटते
थे दोनों
एक अपनी महक से और दूजा
मेरी गलतियों को मिटा
के
जहाँ ज़रा गलती हुई
नहीं कि
झट से पन्ना साफ
वह फिर नया
का नया
फिर उकेरती
नए शब्द
कितना भला लगता था
जीवन की सहज कच्ची पगडंडियों पर चलना
कितनी भली बेख़बर सी
थी उम्र
चिंता की परिभाषा
से निपट अंजान
भरे थे जिसमें कोमल
एहसास
अल्हड़ सपने जादू और
सौ-सौ रंग
कोई भी गलती
कितनी
आसानी से मिट जाती थी
चली ज्यों-ज्यों उम्र
की पक्की राहों पे
पग-पग सोचों की खूँटी
पे
टँगा पाया अनगिन
प्रश्नों को
उलझ के रह गए सवालों
के रेशे
खिंच गईं कई आड़ी-तिरछी
लकीरें
काश! मिल
जाता कोई
अब भी ऐसा रबड़ जो मिटा
डालता
इन दुख चिंता भय और
नफरत की लकीरों को
साफ हो जाता हृदय
का पन्ना पुन:
उस कॉपी
के पन्ने की तरह ।
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