पथ के साथी

Sunday, June 27, 2010

कितना अच्छा होता !


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

कितना अच्छा होता !जो तुम

यूँ बरसों पहले मिल जाते

सच मानो इस मन के पतझर-

में फूल हज़ारों खिल जाते

खुशबू से भर जाता आँगन ।

कुछ अपना दुख हम कह लेते

कुछ ताप तुम्हारे सह लेते

कुछ तो आँसू पी लेते हम

कुछ में हम दो पल बह लेते

हल्का हो जाता अपना मन ।

तुमने चीन्हें मन के आखर

तुमने समझे पीड़ा के स्वर

तुम हो मन के मीत हमारे

रिश्तों के धागों से ऊपर

तुम हो गंगा -जैसी पावन ।

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