1-मुक्तक – डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
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2-दोहे -गुंजन अग्रवाल
1
हाथों में
राखी लिये, आया
सावन मास ।
परदेशी
बहना हुई, भाई
खड़ा उदास ।।
2
धरा प्रणय
को देख कर, सावन
झरता जाय ।
बिन साजन
तरसे जिया, बरखा
तन सुलगाय ।।
3
आँख
-मिचौली खेलते, श्याम-सलोने
मेह ।
सूखे ताल
पुकारते, बरसा
दो अब नेह ।।
4
चाँद हो
गया लापता, तारक
है द्युतिमान ।
झींगुर
करते शोर है, दादुर
गाते गान ।।
5
जलद
फूँकते शंख है, इंद्र
फेंकते तंत्र ।
रिमझिम
करती आ गिरी, बूँदे
पढ़ती मन्त्र ।।
6
प्रीत-पपीहा
गा रहा, मीठे-मीठे
राग ।
सावन के
झूले पड़े, जली
विरह की आग ।।
7
वर्षा की
ऋतु आ गई, नाचे
वन में मोर ।
छलक पड़े
तालाब सब, दादुर
करते शोर ।।
8
झूम उठी
है वादियाँ, हँसी
बिखेरे खेत ।
मेघ सुधा
पीकर धरा, देखो
हुई सचेत ।।
9
फिर आँगन
में नाचती, बूँदों-संग उमंग ।
विरही मन
प्यासा रहा, पिया
न मेरे संग ।।
10
सावन लेकर
आ गया, शुभ
संदेसा आज ।
पैरों में
थिरकन हुई, बूँद
बनी है साज़ ।।
11
किसान सब
बदहाल हैं, बिगड़े सब हालात ।
नैन लगाए
टकटकी, बरसे
कब बरसात ।।
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