1-शशि पाधा
हवा कुछ चंचला- सी है
न जाने कौन आया है
लहरती कुंतला- सी है
इसे किसने लुभाया है ?
अभी तो गुनगुनी- सी थी
ज़रा फिर शीत हो गई
नहाई धूप में जीभर
वासन्ती पीत हो
गई
सलोनी श्यामला -सी है
रुपहला रूप पाया है ।
तरु शिखरों पे जा बैठी
उतर फिर डाल पर झूली
अल्हड यौवना कैसी
अँगना द्वार ही भूली
उलझी मेखला- सी है
किसी योगी की माया है ।
उड़ाती खुशबूएँ इत–उत
बनी है इत्र की दूती
कभी बगिया में इतराए
कभी जा आसमाँ छूती
सुरीली कोकिला सी है
कहीं मधुमास आया है ।
रंगाई लहरिया चुनरी
पहने सातरंग चोली
छेड़े फाग होरी धुन
खेले फागुनी होली
रंगोली मंगला-सी है
इसे किसने सजाया है ।
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