पथ के साथी

Saturday, April 3, 2021

1067-चंचला

 1-शशि पाधा


हवा कुछ चंचला- सी है

न जाने कौन आया है

लहरती कुंतला- सी है

इसे किसने लुभाया है ?

 

अभी तो गुनगुनी- सी थी

ज़रा फिर शीत हो गई

नहाई धूप में जीभर  

वासन्ती  पीत हो गई

सलोनी श्यामला -सी है

रुपहला रूप पाया है ।

 

तरु शिखरों पे जा बैठी

उतर फिर डाल पर झूली

अल्हड यौवना कैसी  

अँगना द्वार ही भूली  

उलझी मेखला- सी है

किसी योगी की माया है 

 

उड़ाती खुशबूएँ इत–उत

बनी है इत्र की दूती

कभी बगिया में इतराए  

कभी जा आसमाँ छूती

सुरीली कोकिला सी है

कहीं मधुमास आया है 

 

रंगाई लहरिया चुनरी   

 पहने सातरंग चोली     

 छेड़े फाग होरी धुन

 खेले फागुनी होली

रंगोली मंगला-सी है

इसे किसने सजाया है ।

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