पथ के साथी

Wednesday, June 4, 2014

इस बस्ती में

 
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
जब-जब छुपकर वार करेगा
तब-तब वो मुस्काएगा ।
बैठ सामने  चारण बनकर
गुण जीभर कर गाएगा ।।

दौर मुसीबत का जब होगा
साथ  रहेंगे  बेगाने ।
वह अपनों का लगा मुखौटा
दूर कहीं छिप जाएगा ।।

घाव -लगे तन-मन पर लाखों
बैरी  मरहम  ला देंगे ।
उसके वश में जितना होगा
उतना नमक लगाएगा ॥

इस बस्ती में बैठके प्यारे
प्यार वफ़ा की बात न कर ।
बंजर दिल की इस धरती पर
उपवन कौन खिलाएगा ॥

अपनी चादर कितनी मैली
समय नहीं जो देख सके ।
उजली चादर जिनकी दिखती
उस पर दाग़ लगाएगा ॥    
0-(14-12-2007)