पथ के साथी

Monday, October 16, 2017

767

मुक्तक
डॉ.कविता भट्ट
1
सूखा खेत बरसती बदली हूँ मैं
आसुरी शक्तियों पर बिजली हूँ मैं ।
मुझे इस नीड़ से निकलने तो दो
ये मत पूछना कि क्यों मचली हूँ मैं ॥
2
फूल -पाँखुरी भी हूँ , तितली हूँ मैं
उमड़े तूफ़ानों से निकली हूँ मैं ।
असीम अम्बर में लहराने तो दो
ये कभी मत कहना कि पगली हूँ मै॥
3
गिरी , हौसलों से सँभली हूँ मैं
तभी तो यहाँ तक निकली हूँ मैं ।
शिखर पर पताका फहराने  दो
अभी तो बस घर से चली हूँ मैं ॥

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