पथ के साथी

Thursday, February 23, 2012

उदास न होना



-रामेश्वर काम्बोज ‘ हिमांशु

बहुत हैं बादल
घिरे अन्धेरे
उदास न होना
तुम चाँद मेरे।

आशा रखोगे
बादल छँटेंगे
दु:ख भी घटेंगे
होंगे सवेरे ।
-0-

अकेली छुअन
भिगो देगी मन
सींचेगी प्राण
द्वारे तुम्हारे ।

तेरा दु:ख सहूँ
मैं किससे कहूँ-
दे दो सभी दु:ख
मुझको उधारे।

लहरें तरसतीं
तट को परसतीं
ग्रहण लगा चाँद
सागर निहारे ।
-0-

Thursday, February 9, 2012

हमने लिखा (चोका)


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
हमने लिखा-
चिड़िया उड़ो तुम
तोड़ पिंजरा
नाप लो  ये गगन
छू लो क्षितिज !
पार न कर सके
लेकिन हम
अपना ही आँगन ।
लाखों बातें कीं
तोड़कर पहाड़
नदी लाने की,
तोड़ न सके कभी
जर्जर ताला
सदियों से था जड़ा
रूढ़ियों पर,
हमारी सोच पर
डरता मन ;
टूट न जाए कहीं
ये घुन-खाया
दरवाज़ा  पल में
जो छुपाए है
कमज़ोर हाथों को-
उन हाथों को
जो कभी  नहीं बढ़े
मुक्ति पाने को
पिंजरों में बन्द ही
लिखते रहे
सदा मुक्ति का गीत
होकर भयभीत ।
-0-

Sunday, February 5, 2012

हाइकु मुक्तक



-रामेश्वर काम्बोज हिमांशु’
1
मिलने की थी / चाहत पाली जब/ मिला बिछोड़ा ।
टूटा है मन / टुकड़ों-टुकड़ों में/ जितना जोड़ा ॥
रफ़ू करेंगे / मन की चादर को /उधड़ेगी ही ।
सपनों में ही / आकर मिल जाना/ जीवन थोड़ा ॥


2
पता जो पूछा/ तुम्हारा, भूल हुई /घर खो बैठे ।
झुकाते माथा/ खुशी से वही हम / दर खो बैठे ॥
सज़ा मिलेगी / तेरा नाम लिया तो / पता हमको
अपना माना/ जबसे , हम सारा /  डर  खो बैठे ।।

3
सँभले जब / पता चला हमको/क्यों टूटा मन ।
झूठे चेहरे/ पास खड़े थे जान / गया दर्प
हम अकेले/ नदी किनारे  संग / रोती लहरें ।
कितनी व्यथा !/ चीरती धारा , जाने/ सान्ध्य- गगन ।।

4
ढूँढ़ा हमने / सपनों तक में भी / खोज न पाए ।
तुम तो सदा / हमारे थे फिर क्यों / हुए पराये ।
जान तो लेते /हम किस हाल में / जीते -मरते
सब सन्देसे / खो गए गगन में/ हाथ न आए ॥
-0-
(चित्र:गूगल से साभार)