पथ के साथी

Thursday, June 20, 2024

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 तहजी़ब सुरभि डागर

 


नुमाइश है हजारों पर ना

नुमाइश जिस्म  की ना कीजि

पुरखों ने जो दी सौगात

उस इज्जत की लिहाज़ तो कीजि

हजारों सालों में कमाई दौलत

यूँ ना सरेआम तो कीजि

कहीं बहके कदम,थाम लो

जाम का प्याला अगर हाथ हो तो

याद अपने बाप की पगड़ी को कीजि

बढ़ती नापाक हरकतें

आजादी के नाम खुद को

बर्बाद ना कीजि

पैदा हुई लक्ष्मी बाई, जीजाबाई  हाँ

तहजीब अपने मुल्क की देख लीजिए।

नुमाश है हजारों पर ना

नुमश अपनी ना  कीजिए।

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2-तुम्हारा प्यार रचती हूँ

प्रणति ठाकुर


मन में मैं तुमको हजारों बार रचती हूँ
 

तुम्हारा प्यार रचती हूँ..

जब क्षितिज के छोर से, रश्मियों के डोर से,

भोर मदमाती है आती तितलियों के ताल पर,

हर कली के भाल पर,

स्नेह का कुमकुम लगाती

ज़िन्दगी की आस बनकर,

प्रेम का विश्वास बनकर

जब रवि लिखता है पाती

तब प्रिये मैं भाव बनकर,

भूमि के कण में बिखरकर,

प्रेम का अनुपम अतुल आधार रचती हूँ....

तुम्हारा प्यार रचती हूँ....

 

इन्द्रधनुषी पंख लेकर

 नाचता है जब मयूरा

मोरनी के प्रेम को ही

 बाँचता है जब मयूरा 

जब दृगों से मोर के यूँ

प्रेम का अमृत है झता

देख अकलुष इस सुधा को,

प्रेम की इस सम्पदा को,

मैं भी साथी प्रेम का उद्गार रचती हूँ...

तुम्हारा प्यार रचती हूँ....

 

चाँद की चाहत कुमुदिनी

 के हृदय का द्वार खोले 

चाँदनी का प्यार पाकर

उदधि भी लेता हिलोरें 

सींचकर अमृत सुधाकर

बस निशा में प्यार घोले 

चाँद का उत्सर्ग पाकर,

उस मधुर पल में समाकर,

चाँद सा निर्मल - धवल अभिसार रचती हूँ..

तुम्हारा प्यार रचती हूँ.....

 

तुम हमारे प्रेम जीवन

की मधुर सी कल्पना हो

आँसुओं से जो रची जाती

वो ही  तो अल्पना हो

तुम हमारे प्राण के आधार मन की प्रेरणा हो

हूँ तुम्हारे बिन अधूरी,

पर बनी मीरा तुम्हारी,

वेदनाओं का विकल संसार रचती हूँ...

तुम्हारा प्यार रचती हूँ...

मन में मैं तुमको हजारों बार रचती हूँ 

तुम्हारा प्यार रचती हूँ.....

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