पथ के साथी

Sunday, June 21, 2009

जीवन की कर्मभूमि



जीवन की कर्मभूमि
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'



जीवन की इस कर्मभूमि में ,
ठीक नहीं है बैठे रहना ।
बहुत ज़रूरी है जीवन में
सबकी सुनना ,अपनी कहना ।
सुख जो पाए, हम मुस्काए,
आँसू आए ,उनको सहना
रुककर पानी सड़ जाता है,
नदी सरीखे निशदिन बहना
[21जून,2009 ]