डा०कविता भट्ट
आजीवन पिया को समर्थन
लिखूँगी
निज आलिंगन से
जिसने जीवन सँवारा
प्रेम से तृप्त
करके अतृप्त मन को दुलारा l
उसे आशाओं
स्वप्नों का दर्पण लिखूँगी
प्रेम को अपना
समर्पण लिखूँगी l
प्रणय निवेदन
उसका था वो हमारा
न मुखर वासना
थी; बस प्रेम प्यारा l
उससे जीवन
उजियार हर क्षण लिखूँगी
प्रेम को अपना
समर्पण लिखूँगी l
न दिशा थी, न
दशा थी जब संघर्ष हारा
विकट-संकट से उसने
हमको उस पल उबारा l
उसमें अपनी
श्रद्धा का कण-कण लिखूँगी
प्रेम को अपना
समर्पण लिखूँगी l
कौन कहता है जग
में प्रेम जल है खारा
मुझे तो जग में
सदा प्रेम ने ही उबारा
इस जल पे जीवन
ये अर्पण लिखूँगी
प्रेम को अपना
समर्पण लिखूँगी l
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दर्शन शास्त्र विभाग
हे०न० ब० गढ़वाल विश्वविद्यालय
श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड