पथ के साथी

Tuesday, August 13, 2019

922-प्रियंका गुप्ता की कविताएँ


प्रियंका गुप्ता
1-सराय

लो,
आज सौंप रही हूँ तुम्हें
चित्र- प्रीति अग्रवाल
तुम्हारे दिए सभी वादे;
खोल रही हूँ
अपना नेह-बंधन
मेरे प्यार के पिंजरे का
ताला खुला है
जाओ,
खूब ऊँची परवाज़ भरो
दूर तक विस्तार करो
अपने पंखों का
और जब कभी थक जाना
तो लौटना नहीं
मैं तक न सकूँगी तुम्हारी राह,
इंतज़ार भी नहीं करूँगी
तुम्हारे लौट आने का;
क्योंकि
तुमने शायद
कभी ठीक से देखा ही नहीं;
मैं बसेरा थी तुम्हारा
कोई सराय नहीं...।
-0-
2- फ़र्क पड़ता है...

क्या फ़र्क पड़ता है
कि मैंने
तुम्हें कितना प्यार किया;

क्या फ़र्क पड़ता है
कि तुम्हारी एक आवाज़ पर
मैं कितनी दूर से भागती आई;

क्या फ़र्क पड़ता है
कि तुम्हारी एक मुस्कुराहट पर
मैंने अपने कितने दर्द वारे;

क्या फ़र्क पड़ता है
कि तुममें रब को नहीं
मैंने खुद को देखा;

सच तो ये है 
कि अब किसी बात से
कोई फ़र्क नहीं पड़ता;
क्योंकि
तुमको तो जाना ही था
यूँ ही हाथ छुड़ाकर
ग़लत कहा,
हाथ छोड़कर
पर सुनो,
जाने से पहले
अपने वजूद से झाड़- पोंछ देना मुझे
फिर ग़लत-
अपने वजूद से झाड़ पोंछ दूँगी तुम्हें
क्योंकि
तुम्हें पड़े न पड़े
मुझे बहुत फ़र्क पड़ता है
तुम्हारा कुछ भी रहा मुझमें
तो खुल के साँस कैसे आएगी मुझे
आज़ादी की...।
-0-
3- पासपोर्ट

वो खिड़की
जिस पर खड़े होकर
मेरी निगाहें मुट्ठी भर आसमान
अपनी नन्ही हथेलियों में बाँध लेती थीं
चित्र- प्रीति अग्रवाल
गेट के पार
देखने की कोशिश करते
वहीं पर खूब ऊँचे तक
उचकते मेरे छोटे से कदम
कभी-कभी थक जाया करते थे
खिड़की के उस पार
एक बड़ा समुंदर था
जिस में तैरती थीं
मेरे सपनों की नन्ही रंगीन मछलियाँ
और एक कागज़ की नाव भी,
जिस पर बैठ के
जाने कहाँ -कहाँ तक
घूम आती थी मैं
खिड़की अब शायद चटक गई होगी
मेरे बड़े और मजबूत  पैरों का बोझ
उठाया नहीं जाएगा उससे
पर फिर भी
कौन जाने
मेरा समुंदर आज भी वहीं हो
और हिचकोले खाती नाव भी
बस अब
दूर देश जाने का
पासपोर्ट मेरे पास नहीं...।
-0-सम्पर्क-priyanka.gupta.knpr@gmail.com