पथ के साथी

Sunday, November 27, 2016

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1-डॉ.भगवत शरण श्रीवास्तव
1
मोहन ने  मुरली  धरी,अधर मधुर ले हाथ          
यमुना जल विह्वल हुआ , कर लहरों से बात।
2
मोदी  की  धुन  गूँजती  चारों दिस में आज
भारत  जग पे छा गया  ,बन करके  सरताज।
3
मंजि़ल  पाने के लिए  ,करनी पड़ती  साध
जब तक  काँटा ना चुभे , बने न तब तक बात
4
जनता दुख से दूर हो ,तभी सफल है राज
सुख की छाया जब मिले ,सभी सफल तब काज ।
5
भरे पड़े गद्दार हैं , इन पर रखिए आँख
भारत का चोला पहन  ,करते ताक व झाँक ।
6
सदा घ्यान की  गंग में ,डूबो सौ -सौ  बार
नाम जपो जगदीश का ,लिख-लिख बारम्बार
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2- डॉ.आशा पाण्डेय,कैंप,अमरावती
1
दिया जलाती लेखनी,  अक्षर-अक्षर तेल,
बाती बन लेखक जले, नहीं सरल यह खेल।
2
बच्चों की मुसकान से, ख़ुशी अधिक न कोय,
सुन्दरता झरने लगे,  गर दो दतुली होय ।
3
डाली कोयल कूकती, सुन हर्षाते लोग ,
जाने ना काहे लगा, कूकन का यह रोग ।
4
काश बीज ऐसा लगे, महके उसपर फूल ,
चढ़े देव के शीश पर, पर भूले ना मूल ।
5
मौन बड़ा मारक हुआ, शब्द हुए बेकार ,
मोटी पलकें हैं झुकीं, करती कड़ा प्रहार ॥
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3-आभा सिंह
 1
अँगड़ाई लेने लगा, परिवर्तन का दौर,
मीठी- मीठी ठण्ड है, नहीं गरम को ठौर।
 2
गलियारे की धूप का, जाग गया जो गीत,
खिली- खिली तिदरी हुई, छज्जे लुढ़का शीत।
 3
नीर ताल का ठिर रहा, रहट रहा है ऊँघ,
नंगे पाँव हवा चले, झूमे सरसों सूँघ।
 4
कुहरे लिपटे खेत हैं, सीला सा परिवेश,
हरफ़ हरफ़ को पोंछकर, मेड़ पढ़े संदेश।
 5
ठंडा मौसम बेअदब, कँपा रहा बेभाव,
थोड़ी राहत दे रहा, जलता हुआ अलाव।
 6
छप्पर में भी छेद है, चादर में भी छेद,
जाड़ा निर्मोही हुआ, रहा हाड़ को भेद।
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