1-डॉ.भगवत शरण श्रीवास्तव
1
मोहन ने मुरली
धरी,अधर मधुर ले हाथ
यमुना जल विह्वल हुआ , कर लहरों से बात।
2
मोदी की
धुन गूँजती चारों दिस में आज
भारत जग पे छा गया
,बन करके सरताज।
3
मंजि़ल पाने के लिए
,करनी पड़ती साध
जब तक काँटा ना चुभे , बने न तब तक बात
4
जनता दुख से दूर हो ,तभी सफल है राज
सुख की छाया जब मिले
,सभी सफल तब काज ।
5
भरे पड़े गद्दार हैं , इन पर रखिए आँख
भारत का चोला
पहन ,करते ताक व झाँक ।
6
सदा घ्यान की गंग में ,डूबो सौ -सौ बार
नाम जपो जगदीश का ,लिख-लिख बारम्बार
-0-
2- डॉ.आशा पाण्डेय,कैंप,अमरावती
1
दिया जलाती
लेखनी, अक्षर-अक्षर तेल,
बाती बन लेखक जले,
नहीं सरल यह खेल।
2
बच्चों की मुसकान
से, ख़ुशी अधिक न कोय,
सुन्दरता झरने
लगे, गर दो दतुली होय ।
3
डाली कोयल कूकती,
सुन हर्षाते लोग ,
जाने ना काहे लगा,
कूकन का यह रोग ।
4
काश बीज ऐसा लगे,
महके उसपर फूल ,
चढ़े देव के शीश पर,
पर भूले ना मूल ।
5
मौन बड़ा मारक हुआ,
शब्द हुए बेकार ,
मोटी पलकें हैं
झुकीं, करती कड़ा प्रहार ॥
-0-
3-आभा सिंह
1
अँगड़ाई लेने लगा, परिवर्तन का दौर,
मीठी- मीठी ठण्ड है, नहीं गरम को ठौर।
2
गलियारे की धूप का, जाग गया जो गीत,
खिली- खिली तिदरी हुई, छज्जे लुढ़का शीत।
3
नीर ताल का ठिर रहा, रहट रहा है ऊँघ,
नंगे पाँव हवा चले, झूमे सरसों सूँघ।
4
कुहरे लिपटे खेत हैं, सीला सा परिवेश,
हरफ़ हरफ़ को पोंछकर, मेड़ पढ़े संदेश।
5
ठंडा मौसम बेअदब, कँपा रहा बेभाव,
थोड़ी राहत दे रहा, जलता हुआ अलाव।
6
छप्पर में भी छेद है, चादर में भी छेद,
जाड़ा निर्मोही हुआ, रहा हाड़ को भेद।
-0-