हाइकु मुक्तक
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु
1
सपने लाख / जतन से पालना / टूट जाते हैं
प्यार करते / जान से ज्यादा भी / रूठ जाते हैं ।
हमें न डर / कि अनजान धोखा / दे सकता है
घेरे हमें जो / रात -दिन सगे ही / लूट जाते हैं । ।
2
मिलेंगे रास्ते / या भटकाव होगा / झेलना होगा
मिलेंगे फूल /या अंगार उनसे / खेलना होगा ।
चौराहे पर / गले रोज़ मिलतीं / हमें बाधाएँ
चुनौती बनी / ज़िन्दगी पापड़ तो /बेलना होगा॥
3
लौटेंगे वो भी / मौसम भी ,आवाज़ / लगाके देखो
दिल दरिया / से दो घूँट प्यार के /पिलाके देखो ।
दुश्मनों की भी / मिलती सरहदें / मज़बूरी है
दर्द समझो / इस बार दिल भी / मिलाके देखो । ।
4
दु:ख सहके /आखिरी दम तक /निभाए रिश्ते
हम थे अच्छे /सभी को उम्रभर /थे भाए रिश्ते ।
आज हमने । दो घूँट पानी माँगा /तो यह जाना
द्वार थे बन्द / जरा भी किसी काम /न आए रिश्ते ॥
5
परदेस में /ज़रा -सी हूक उठी / भीगे नयन
जान ही लिया / उसने, रोया होगा / मेरा ये मन ।
इस जहाँ में / कभी बाधक नहीं / दूरियाँ होतीं
भाव का रिश्ता / पढ़ लिया करता/ हर कम्पन । ।
6
मिले हैं रोज़ /चौराहों पर लाखों / मिटाने वाले
नौसीखिए भी / बन गए हैं पाठ / पढ़ाने वाले।
साथ तुम हो /परस का जादू है / प्यार तुम्हारा
चलेंगे साथ / तो हार ही जाएँगे / झुकाने वाले । ।
7
टकरा गया / सुधियों के तट से / भाव का जल
खिल उठे थे / कुछ एक पल में / सारे कमल ।
मुस्कुरा उठी / चाँदनी-सी निर्मला /झील मन की
शीतल हुए / तुम्हारे दरस से / नैन बेकल । ।
8
स्वार्थ का बोझ / शिला बन जाए तो /भार हैं रिश्ते
नेह के मेघ/ न बरसे तो बनें / थार हैं रिश्ते ।
इस जग में / अगर चाहो रहे / आदमी ज़िन्दा
सूखते दिल /सींच दो मिलकर / प्यार हैं रिश्ते । ।
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