पथ के साथी

Thursday, December 17, 2020

1037-चलो भरें हम भू के घाव

ज्योत्स्ना प्रदीप

(जयकरी/ चौपई छन्द/

विधान~चार चरण,प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ,अंत में गुरु लघु।दो-दो चरण समतुकांत।)

 

धरती  जीवन   का   आधार।


धरती  पर   मानव - परिवार ।।

 

जीव - जंतु  की  भू  ही  मात।

धर्म -  कर्म  कब   देखे   जात।।

 

झील, नदी, नग ,उपवन,खेत ।

हिमनद, मरुथल , सागर,रेत ।।

 

हिना  रंग   की    मोहक   भोर।

खग का  कलरव  नदिया  शोर।।

 

करे यहाँ  खग   हास - विलास ।

अलि ,तितली की मधु की प्यास।।

 

तारों  के   हैं    दीपित    वेश।

सजा   रहे   रजनी  के   केश।।

 

नभ  में  शशि -रवि  के कंदील।

चमकाते   धरती   का  शील।।

 

युग बदला  मन बदले   भाव ।

मानव  के  अब बदले  चाव  ।।

 

हरियाली   के   मिटे    निशान ।

वन , नग   काटे  बने   मकान ।।

 

मानव  के   मन  का ये  खोट ।

मही -हृदय   को  देता  चोट ।।

 

मत   भूलो   हम  भू - संतान ।

करो सदा  सब  माँ  का  मान।।

 

हरियाली  का   कर   फैलाव ।

चलो भरें  हम  भू   के   घाव।।

b

 

-0-