ज्योत्स्ना प्रदीप
(जयकरी/ चौपई छन्द/
विधान~चार चरण,प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ,अंत
में गुरु लघु।दो-दो चरण समतुकांत।)
धरती जीवन का आधार।
धरती पर मानव - परिवार ।।
जीव - जंतु की भू ही मात।
धर्म - कर्म कब देखे
जात।।
झील, नदी,
नग ,उपवन,खेत ।
हिमनद, मरुथल
, सागर,रेत ।।
हिना रंग की मोहक भोर।
खग का कलरव नदिया शोर।।
करे यहाँ खग हास -
विलास ।
अलि ,तितली
की मधु की प्यास।।
तारों के हैं दीपित वेश।
सजा रहे रजनी के
केश।।
नभ में शशि -रवि के
कंदील।
चमकाते धरती का शील।।
युग बदला मन बदले भाव ।
मानव के अब बदले चाव
।।
हरियाली के मिटे
निशान ।
वन , नग
काटे बने मकान ।।
मानव के मन का ये
खोट ।
मही -हृदय को देता
चोट ।।
मत भूलो हम भू
- संतान ।
करो सदा सब माँ
का मान।।
हरियाली का कर
फैलाव ।
चलो भरें हम भू
के घाव।।
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