पथ के साथी

Saturday, March 23, 2019

885


इंसान पेड़ नहीं बन सकता कभी
रश्मि शर्मा

पेड़ अपने बदन से 
गिरा देता है 
एक-एक कर सारी पत्तियाँ
फिर खड़ा रहता है 
निस्संग
सब छोड़ देने का अपना सुख है
जैसे
इंसान छोड़ता जाता है
पुराने रिश्ते-नाते
तोड़कर निकल आता है
उन तन्तुओं को
जिनके उगने, फलने, फूलने तक
जीवन के कई-कई वर्ष
ख़र्च किए थे
पर आना पड़ता है बाहर
कई बार ठूँठ की तरह भी
जीना होता है
मोह के धागे खोलना
बड़ा कठिन है
उससे भी अधिक मुश्किल है
एक- एककर
सभी उम्मीदों और आदतों को
त्यागना
समय के साथ
उग आती है नन्ही कोंपलें
पेड़ हरा-भरा हो जाता है
पर आदमी का मन
उर्वर नहीं ऐसा
भीतर की खरोंचें
ताज़ा लगती है हमेशा
इंसान पेड़ नहीं बन सकता कभी।

-0-