पथ के साथी

Wednesday, May 10, 2017

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1-सीलन
सुदर्शन रत्नाकर

बारिश में
टपकती रही
घर के कोने की छत
और
दीवारों में सीलन भरती रही
बार- बार करवाया प्लास्ट
हर बार पपड़ी उतरती रही।
एक बार जो भरी सीलन
फिर निकली ही नहीं
क्योंकि छत की दरार
तो जोड़ी ही नहीं।
पानी पत्तों को दिया
जड़ सूखती रही
रिश्ते नाज़ुक होते हैं
छत की तरह नहीं सम्भालो तो
दिलों में भरी सीलन
फिर जाती ही नहीं।
-0-
2-पापा
डॉ.सुषमा गुप्ता

बालों में चाँदी....झुर्रियों से ढके नैन नक्श
पीली पड़ गई आँखें...जर्द हो गए नाखून
और फिर क्षमता निरंतर जूझते जाने की ।
आपको छूती हूँ तो महसूस होती है मुझको
हड़्ड़ियों का साथ छोड़ती आपकी त्वचा
और थकान लम्बे संघर्ष भरे जीवन की ।
हाँ हूँ मैं आपकी इकलौती लाड़ली बिटिया
हाँ हूँ मैं आज भी मुस्कान आपके होंठों की
पर कुछ तो बदल गया है पापा........
आपके मेरे बीच ..कुछ तो जरूर बदला है
मैं भूल जाती हूँ अक्सर अब..मर्यादा बेटी की
बार -बार भूल जाती हूँ पापा...पता नहीं क्यों
अब जब छूती हूँ आपके तनिक काँपते- से हाथ
तब...क्यों लगता है-
 मैं माँ हूँ आपकी .. क्यों ???
ये कैसी तीव्र सी भावना है मन मे अथाह ममता की
जैसे आप बेटे हो मेरे..एक काँटा तक न चुभे आपको
जैसे मेरी जिम्मेदारी है आपको हर दर्द से बचाने की
बताओ न पापा क्यों ...क्यों लगता है
मैं बेटी नही...
मै माँ हूँ आपकी ?? क्यों ????
-0-

3-यादें
 ऋतु कौशिक

अतीत की खुशियों में लिपटी,
यादों की वो भीनी दस्तक
जब आए मेरे दरवाजे,
उनकी अँगुली थामके मैं
पीछे हो लूँ और वो आगे,
हर दुख, हर ग़म पीछे छूटे
हर चिंता से नाता टूटे,
बस वो प्यारे स्वर्णिम पल-छिन
मुझको याद रहे जब मैं,
एक परिंदे की मानिंद थी
ग़म भी आता तो भी,
एक लकीर भी माथे पर न आती
दुख- पीड़ा को बाँटने वाले ,
कुछ एसे थे संगी साथी
खेतों पर और मेड़ों पर
जंगल की पगडंडी पर,
रस्ते की सौंधी मिट्टी और
राहों का हर इक पत्थर,
उन प्यारे पलों की यादें हैं
सच ही है-
याद जो न होती ,
तो हर एक जीवन में
बहुत बड़ी कमी होती,
अब जब चाहूँ
यादों का हाथ पकड़कर
 मैं सो जाती हूँ,
और अब न आने वाले
उन अनमोल पलों को ,
फिर से जी आती हूँ।
-0-