पथ के साथी

Wednesday, July 24, 2019

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1-सविता अग्रवाल 'सवि', कैनेडा

बिखरी आशाएँ
कुछ आशाएँ इतनी उड़ीं
कि आकाश को छूने लगीं
जो छू न सकीं जब आसमाँ
तो बादल बन विचरने लगीं
कुछ बुलंदी को छू न सकने के ग़म में
आपस में लड़, गरजने लगीं
इतना गरजीं कि बिजली बन
कौंधकर धरा पर आ गिरीं
कुछ रूप बदल, इधर उधर भटकने लगीं
कुछ परेशान और हताश हुईं और
घटाएँ बन रो- रोकर बरसने लगीं
जिन्हें न चाह थी उड़ने की कभी
वे जमी बर्फ़ की तहों में, जमीं,
और जमकर रह गयीं |
          -0-सविता अग्रवाल ‘सवि’, कैनेडा
          savita51@yahoo.com
                        (905)671-8707
-0-
1-धुँधली शाम/ प्रीति अग्रवाल (कैनेडा)

चित्र : प्रीति अग्रवाल 
हमसफर,
हमकदम,
हमजु़बाँ
हो गए।

शाम
धुँधला गई कब
ख़बर ही नहीं!!!
-0-

2-सोनचिरैया/ प्रीति अग्रवाल

बाबुल ! तेरे आँगन की
मैं सोनचिरैया
उड़ जाऊँगी,

चित्र : प्रीति अग्रवाल 

इधर चहकती
उधर फुदकती,
तेरे मन को
मैं हर्षाती,

कभी भाई को
कभी माई को,
दादी -संग मिल
गीत सुनाती।

कर लेने दे
कुछ मनमानी,
बेफिक्री के संग नादानी,

कल न जाने
किस घर जाऊँ,
क्या जाने उनके
मन भाऊँ!??

गागर भरके
लाड़ प्यार से,
ममता समता
और दुलार से,

चाहे जो हो
जैसा भी हो,
उस घर जा
मैं छलकाऊँगी,

बाबुल तेरे आँगन 
की मैं, सोनचिरैया
उड़ जाऊँगी!!!