पथ के साथी

Monday, June 20, 2016

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जीवन चिरंतन हो गया है
डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा अरुण

जब से मिले हो तुम मुझे,
जीवन ये पावन हो गया है!
      अँधियार सारा मिट गया,
            उजियार ही उजियार है!
                  नफरत मिटी मन से मेरे,
                       अपना- सा अब संसार है!!
हर तरफ फैली हैं खुशियाँ,
जीवन  तपोवन हो गया है!
          उपकार से परिचय हुआ,
               उपकृत मैं जैसे हो गया!
                    जब सुख दिए संसार को,
                         मैं सुखी खुद हो गया!!
पतझर मिटा मन का मेरे,
जीवन ही सावन हो गया है!
             वसुधा मेरी अपनी हुई,
                   विस्तार मुझको मिल गया!
                         मृत्यु - भय मन से गया,
                               अमरत्व मुझको मिल गया!!
पा गया अमृत मैं पावन,
जीवन चिरंतन हो गया है!
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डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा "अरुण"
पूर्व प्राचार्य,74/3,न्यू नेहरु नगर,रुड़की-247667