पथ के साथी

Thursday, September 29, 2016

675



1-सुनीता काम्बोज

काँटेदार झाड़ियाँ फैली, बहुत घना जग कानन है
तमस भरा है रोम- रोम में, ऐसा मन का आँगन है
ईर्ष्या के पत्ते डाली हैं,अहंकार के तरुवर हैं
काई द्वेष की जमी है इसमें, बगुलों से भरे सरोवर हैं
काँटे झूमते निंदा रूपी,घास फूस है जड़ता का
सर्प रेंगते बिच्छू खेलें , बंजर सारे गिरवर हैं
जहरीली बेले फैली हैं, न तुलसी न चंदन है
तमस--
लिप्सा के हैं मोर नाचते, तृष्णा के खग बोल रहे
करुणा, प्रेम दया, ममता भी , सहमे- सहमे डोल रहे
मुक्त करूँ कैसे मैं इनको, नवयुग का निर्माण करूँ
छल की हाला को घन काले ,सच्चाई में घोल रहे
मद के पतझड़ की छाया है ,हीं वसन्त ,न सावन है
तमस----
जल जाएँगे इक पल में ही, सच की आग लगा देना
फूल खिलाकर करुणा के तुम, गुलशन यह महका देना
पुष्प प्रेम के मुरझाए हैं ,फिर से उन्हें खिलाकर तुम
नेह-नीर से इन्हें सींचकर, उजियारा फैला देना
क्यों बिन कारण ये उलझन है ,क्यों संशय की अनबन है
तमस----
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2-परमजीत कौर 'रीत

रोज उम्मीदों की चादर -सी बिछाती है निशा
सबको सपनों के लिये जीना सिखाती है निशा
चाँद आए ,या न आए, है ये उसकी मरजी
र्घ्य देने का धरम अपना , निभाती है निशा
घोर अँधियारे से तन्हा जूझकर भी ,हर सुबह
सोने जैसा नित नया सूरज , उगाती है निशा
रोज मरकर, रोज जीना किसको कहते हैं ,ये
हर प्रभाती को गले मिल मिल बताती है निशा
छोटी छोटी खुशियों से, जीवन सजा लेना 'रीत'
छोटे -छोटे तारों से ज्यों नभ सजाती है' निशा
-0-श्री गंगानगर(राजस्थान)


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Wednesday, September 28, 2016

674



शहीदे आज़म भगत सिंह
गीत
डॉ.पूर्णिमा राय
भारत ये मेरा महान हो जाए ।
खुशहाल हमारा किसान हो जाए ।।
दे दो जन्म-दिवस पर यही तोहफा;
हर युवक भगत- सा जवान हो जाए ।।
पहने सभी आज बासंती चोला;
वीरों पर सबको गुमान हो जाए ।।
देश-प्रेम का सरूर चढ़े इस कदर ;
दिल में भगत का अरमान हो जाए ।।
वीर तेज़ से भरी दिखती 'पूर्णिमा'
कण-कण भगत सिंह निशान हो जाए ।।
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दोहे- डॉ.पूर्णिमा राय

भारत माता के लिये, सहते थे जो पीर।
भगत सिंह से अब कहाँ,जग में दिखते वीर।।
विश्व मनुज से ही बनी, भारत माँ की शान।
भगत सिंह की सोच का, जग में हो सम्मान।।
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Tuesday, September 27, 2016

673

संदली फिज़ाओं में पीपल की छाँव में काव्य-पाठ

दिनांक25 सितंबर2016,रविवार,वैशाली,गाजियाबादमें पूर्व की भाँतिपेड़ों की छाँव तले रचना पाठ की24वीं साहित्यिक गोष्ठी की विशेष प्रस्तुतिकवयित्री रचना पाठ 2016वैशाली सेक्टर चार स्थित हरे भरे मनोरम सेंट्रल पार्क में सम्पन्न हुईहिन्दी साहित्य से सम्बन्धित अभिनव प्रयोग की यह शृंखला प्रत्येक माह के अंतिम रविवार को पूर्व निर्धारित कार्यक्रम अनुसार ही मध्याह्न उपरांत 4:00 बजे से प्रारम्भ हुईइस बार की गोष्ठी का विषयनारी अस्मिता व शक्ति स्वरूपा’ रहा जिसे महिला कवयित्री रचना पाठ से नऊँचाइयाँ प्राप्त हुईं।
इस अवसर पर स्थानीय पार्षद नीलम भारद्वाज द्वारा सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र व भेंट स्वरूप पुस्तकें प्रदान की गईँ। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ वरुण कुमार गौतम व संचालन अवधेश सिंह(संयोजक) ने किया।
आमंत्रित कवयित्रियों में प्रमुख रूप से अंजू सुमन साधकने दोहे पढ़े ममता की अब हो गहै ये कसी शक्ल / मात -पिता करने लगे,आरुषियों के कत्ल। मनजीत कौर 'मीत' ने गीत माँ दिल डरता है अब तो,सुन खबरे बदकारों की,कोमल कमसिन तू क्या जाने नजरें इन मक्कारों की सुनाया।सुनीता पाहूजा ने कहा- मुझे पंख देकर उड़ना सिखाया तुमने, छू लूँ आसमान ये हौसला दिलाया तुमने,अब मेरी इन ऊँचाइयों से डरना न तुम,अब मेरे ये पंख देखो कतरना न तुम;

डॉ जेन्नी शबनम ने अपनी कविता शीर्षक 'झाँकती खिड़की' से सुनाया-पर्दे की ओट से / इस तरह झाँकती है खिड़की / मानो कोई देख न ले / मन में आस भी / और चाहत भी / काश कोई देख ले; का भावपूर्ण पाठ कर श्रोताओं को प्रभावित किया और वाहवाही लूटी।


श्यामा अरोड़ा ने तेजस्वी हुंकार भरी 'समझ कर हीन अपने पर स्वयं अन्याय न मत करिए,तुम्हारी शक्ति सारा विश्व चरणों में झुका देगी,उठो जागो तुम्हारे जागरण का वक्त आया है। तुम्हारी चेतना सोई मनुजता को जगा देगी.’'पूनम माटिया ने प्रेम में डूबी ग़ज़ल के चुनिन्दा शेर पढ़े- टुकड़ो में बाँट देता है,पूरा होने नहीं देतामुमकिन है जीत जाऊँ मैं,जिस लम्हा जोड़ लूँ ख़ुद को,श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। वहीं सुप्रिया सिंह 'वीना'ने अपनी कविता माँ की ममता का अमर कोश / कभी मिटा सका क्या मृत्युबोध / तेरी आँचल की छाया में / स्वछंद निडर अंजान डगर पर चलती थी का भावप्रवण पाठ किया।साहित्यिक त्रैमासिकी 'सृजन से' की संपादिका मीना पाण्डेय ने सुमधुर आवाज में अपने गीत-लेके चल ज़िन्दगी बचपन के गाँव में,संदली फिज़ाओं में पीपल की छाँव मेंसुनाया। 'संवदिया'की संपादिका अनीता पंडित सहित नवोदित आकांक्षा तिवारी निधि गौतम ने काव्य पाठ किया।
विशेष आमंत्रित विशिष्ट कवियों में सर्वश्रीअनिल पाराशर 'मासूम',मृत्युंजय साधक,शिव नन्द 'सहयोगी', देवेन्द्र,देवेश,अरुण कुमार राय,मनोज दिवेदी,अमर आनन्द,कैलाश खरे,अवधेश निर्झरआदि रहे।इस अवसर पर सर्व श्री रतल लाल गौतम,कपिल देव नागर,दयाल चंद्र,अश्विनी शुक्ल,छेदी लाल गौतम,धीरेन्द्र नाथ तिवारी, शत्रुघ्न प्रसाद,महेश चन्द्र,रति राम सागर,कैलाश पाण्डेय,नारायण सिंहआदि प्रबुद्ध श्रोताओं ने रचनाकारों के उत्साह को बढ़ाया।


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Monday, September 26, 2016

672




1-कमल कपूर की कविताएँ
1-तुम
तुम सूर्य की पहली किरण हो,ओस-बिन्दु प्रभात की
साँझ की हो लालिमा,और चाँदनी हो रात की।

छू सबा को जो खिली, तुम हो वह कोमल कली
भ्रमर ने चूमा है मुखड़ा,पवन-पलने में हो पली।

भोर का पहला हो पाखी,जो जगाए सृष्टि को
हो सुंदरता की वह प्रतिमा,जो लुभाए दृष्टि को।

पुण्य सलिला मंदाकिनी की उत्तंग एक तरंग हो
गंगा सागर से मिलन की उमंग भरी तरंग हो।

मलयाचल से चल कर आई, तुम वह चन्दन-गंध हो
तितलियों की हो चपलता, सरस सुमन सुगंध हो।

सुर ताल लय और रागिनी हो,गीत भी संगीत भी।

सावन की पहली हो बरखा,वासंती परी मधुमास की
भावना हो कामना हो,आस भी औ विश्वास भी।

वाग्देवी की हो वीणा, हो कान्हा जी की बाँसुरी ,
आत्मा हो राधिका की और हो तुम मीरा बावरी।

कबीर की हो साखियाँ और तुलसी की चौपाई हो
मीर गालिब की गज़ल हो खय्याम की रुबाई हो।

मंदिर की हो दीपिका और हो साधक की साधना
हृदय में उपजी दुआ हो ,होठों पर जन्मी प्रार्थाना।

निर्झर सी कभी मुखर ,कभी रहस्यमय मौन हो
क्या दूँ परिचय मैं तुम्हारा, क्या कहूँ तुम कौन हो।

ब्रह्मा की सर्वोत्तम रचना,नारी का सौम्य रूप हो
ग्रीष्म में ठंडी पवन  और जाड़े में कच्ची धूप हो।

अवनि अंबर और अंबु, अनिल हो और अनल हो
देव-चरणों में समर्पित पूर्ण विकसित कमल हो।
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2: यदि...

न करूँगी मैं किसी राम की ठोकर का इंतज़ार
हूँ अहल्या अपने हाथों ही करुँ अपना उद्धार।

हे राघव! न डालना सिया को किसी इम्तेहान में
न दूँगी परीक्षा औ कहूँगी पहले झांको गिरेबान में।

नहीं लौटना तो न लौटो हे श्याम अब ब्रजधाम को
टाँकती अब राधिका भी प्रतीक्षा पे पूर्णविराम को।

किसी अर्जुन में न साहस कि पाँच हिस्सों में बाँटे
रखे याद कि फूल- संग होते हैं अब बहुत से काँटे।

यूँ तजकर जा सकते नहीं पत्नी सुत को हे सिद्धार्थ
या तो होगा लौटना या ले जाना होगा हमें भी साथ।

सप्तपदी के भूल वचन मुख मोड़ गये हो हे तुलसी
तो देख लो रत्नावली मैं विरहाग्नि में नहीं झुलसी।

उर्मिला मैं लखन हेतु अब अश्रू नहीं बहा रही
अपने लिये एक नवल कर्मक्षेत्र हूँ बना रही।

ये सकल ही देवियाँ जो आ जाएँ धरा पे नारी भेष में
तो यकीनन यही कहेंगी आज के नूतन परिवेश में।
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कमल कपूर,२१४४ / ९ सेक्टर, फरीदाबाद-१२१००६, हरियाणा
मोबाइल-९८७३९६७४५५
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