पथ के साथी
Monday, January 30, 2023
Sunday, January 29, 2023
1280
सुषमाप्रदीप मोघे
1- वसंत
ऋतु!
पात-पात झूम उठे,
खिल जाये सारी सृष्टि हो..
तन-मन वन-आँगन
उमंग भरी वृष्टि हो....
वृक्ष लताएँ गले मिलें
मंगल गीत गान हो...
भोंरे गुन-गुन करें
सृजन गीत गान हो..
बाग की कली-कली
पुष्प बन फलितार्थ हो..
आज फिर एकबार
मौसम चरितार्थ हो...
आँगन-कानन. गली-गली
वासंतिक बयार हो...
जनमानस में लहराता
खुशियों का प्रवाह हो...
-0-
2अहा-जिंदगी
!
आनंद का अथाह सागर
अहा ये जिन्दगी है.! ...
अंतर्मन से तृष्णा का..
राग, द्वेष, तृष्णा, विषमता
का विसर्जन हुआ है....
अहा ये जिंदगी है!
विचारों में निच्छलता का
विविधता में एकता का
कण-कण में भगवान के
अस्तित्वकाविश्वास हुआ है
अहा-जिंदगी अहा ये जिंदगी
-0-
3- आकाश
आकाश-सा विस्तार मिल जाए
मेरी कल्पनाओं के
पंछियों को
विचारों के पंख मिल जाएँ
अक्षरों को
युवाओं को राह दिखलाएँ
जिंदगी की
धरती -सा कागज मिल जाए
लिखने को
लेखनीको ताकत मिलजाए
भावना की
सुहाने मन भावन गीत बने
कलरव पंछियों का
कोयल के गीत
तितली की रंगीनियाँ
भँवरोंकी गुनगुन
धरासे गगन तक
गूँजे सुरीले गीत
एक सपनों का संसार
धरती से आकाश तक
-0-
सुषमाप्रदीप मोघे इंदौर
Saturday, January 28, 2023
1279
डॉ. सुरंगमा
यादव
नारी तुम देवी हो, ममता हो
त्याग हो, समर्पण हो, धैर्य हो,
क्षमा हो
प्रतिष्ठित कर दिया नारी को
एक
ऊँचे सिंहासन पर
और लगा दिया अपेक्षा-उपेक्षा का
एक बड़ा-सा छत्र
अपने सपनों को समझो पराली
सींचती रहो औरों के सपने
अन्यथा प्रश्न चिह्न है तुम पर
त्याग के लिए तुम देवी हो,
पूज्या हो
वासना
के लिए फूल हो, सुकोमल हो
जब मन भर गया तो माया हो
पुरुष के अहं के आगे तुम
अबला हो, अज्ञानी हो
अपमान का घूँट पीने के लिए
धैर्य हो, क्षमा हो
अपनी सुविधानुसार नर समाज
चिपका देता है विशेषण तुम पर
और भूल जाता है
नारी देवी है, तो उसका अपमान क्यों?
अगर वह अबला है तो
कैसे दुख के पहाड़ काटकर
रास्ता बना लेती है
अपनी विशेषताओं का बखान
बहुत
सुन चुकी नारी
अब उससे अपना मूल्यांकन
स्वयं करने दो
उसके लिए क्या होना चाहिए
उसे स्वयं चुनने दो।
2-मौसम का गीलापन
प्रियंका गुप्ता
बर्फ़ पिघली है
पहाड़ों पर
धूप चटख थी
ढलानों पर बहता पानी
उसकी आँखों में आ समाया
जाने कैसे
जाते मौसम का गीलापन
अब भी बाकी था
किसी धूप से
सूखेगा क्या ?
-0-
3-मनोभाव
भीकम सिंह
आड़ा
और तिरछापन
फँसा रहा जीवन में
सीधा हुआ नहीं
मैं रहा हमेशा
सीधेपन में
मन को मिले
चिंता के, ताने- बाने
अपनेपन में
तुम मानो या ना मानो
ये मनोभाव होते ही हैं
नश्वर तन में ।
-0-
Thursday, January 26, 2023
1278-अमर रहे गणतन्त्र हमारा
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जन -जन
की आँखों का तारा
अमर रहे गणतन्त्र हमारा।
हम सबका अभियान एक हो
सभी का संविधान एक हो ।
छिपे देश में अनगिन विषधर
रोज पलटते हमको डँसकर।
हम इनका अब उपचार करें
सब मिलकरके संहार करें ।
बैठ गए यदि इनसे डरकर
हो जाएगा भारत
जर्जर
छद्म वेष धरकर हैं आए
बहुत कुटिल, फिर भी मुसकाए ।
न्याय-तुला को तोड़ रहे हैं
लूट-लूट धन जोड़ रहे हैं ।
इनसे मुक्ति एक ही नारा
अमर रहे गणतन्त्र हमारा।
1277-कोलकाता प्रेस क्लब में ‘विश्व हिंदी लघुकथा संग्रह’ ( बांग्ला) का लोकार्पण
23 जनवरी 2023 को कोलकाता के प्रेस क्लब में ‘विश्व हिंदी लघुकथा संग्रह’ ( बांग्ला) का लोकार्पण हुआ। बांग्ला की प्रतिभावान् मौन साहित्य साधिका और समाजसेविका श्रीमती बेबी करफोरमा द्वारा अनूदित विश्व के हिंदी लघुकथाकारों के इस संग्रह का लोकार्पण श्रीमती वितस्ता घोषाल और अधीर विश्वास के कर कमलों से हुआ। श्रीमती बेबी करफोरमा ने बताया कि इस संग्रह में सौ से ज्यादा देश- विदेश के लेखकों की हिंदी में लिखी डेढ़ सौ से अधिक रचनाएं संकलित और अनूदित हैं। यह अनुवाद पूरा करने के लिए उन्हें वर्ष भर से ज्यादा समय लगा। आज हिंदी में लघुकथा ने आम और खास पाठकों की मनचाही विधा बन चुकी है। अल्प शब्दों में जीवन का बड़े से बड़ा सत्य उजागर करने में सक्षम, लघुकथा के क्षेत्र में बांग्ला भाषा में अपेक्षाकृत कम काम होने के कारण बेबी
करफरमा ने यह अभिनव कार्य करने का बीड़ा उठाया। आशा है इस संग्रह से बांग्ला के रचनाकारों और पाठकों को मौजूदा दौर में हिन्दी में लिखी रचनाओं से रुबरु होने का मौका मिलेगा। इस पुस्तक के प्रकाशन से नए लेखकों को अणुगल्प( लघुकथा) लिखने की प्रेरणा मिलेगी। इस पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर श्री अनिल आचार्य, श्री रतन राय, श्री सुव्रत मंडल, श्री संजीव चौधरी आदि उपस्थित थे।
1- सुब्रता मंडल सी इ ओ ('बइयेर हाट), 2-रतन रे चौधुरी, 3-अनिल
आचार्य , बितस्ता
घोषाल( प्रकाशक_'भाषा संसद'), अधीर बिस्वास
सम्पादक 'गांचील'
0- सगृहीत कुछ लेखक -
-0-
मीडिया में चर्चा के लिए निमलिखित को क्लिक कीजिए-
Wednesday, January 25, 2023
Sunday, January 22, 2023
1275
पिता नहीं उफ़ करता है
पीयूष श्रीवास्तव
सुबह
सवेरे घर से मेरे, एक कर्मठ
राही निकलता है
दिन
भर धूप से लेता लोहा, सूरज के संग जलता है
होती हो बादल की गर्जन, या घिर जाए भीषण बरसात,
उस
राही की आँखों में भाई, इन सब की नहीं कोई बिसात
हर
मुश्किल हर कठिनाई से, लड़ने की हिम्मत रखता है
खून
पसीना इक हो जाए पर, पिता नहीं
उफ़ करता है।
नन्हे- नन्हे बच्चों की अपने,
हर इच्छापूर्ति करता है
माँ
की साड़ी, दादी की ऐनक, हर कमी को हँसके भरता है
हो
पूरे घर की जिम्मेदारी, या रिश्तों की दुनियादारी
परिवार की राह में जो आए, उस पर्वत पर भी ये भारी
जूता
उसका काटे चाहे, मोजों से
अँगूठा निकलता है।
कुर्ते में कितने छेद सही
पर, पिता नहीं उफ़ करता है।
कंधों
पर अपने बैठा कर, सारा ये
जगत दिखलाते हैं
जितना
ख़ुद भी न सीख सके, उसके आगे
सिखलाते हैं
छाती
इनकी तब फूलती
है, बच्चे जब उन्नति करते हैं
काँधे
से उतरकर नीचे जब, जीवन में
खूब निखरते हैं
अपने
सामर्थ्य से आगे बढ़, उम्मीदों
की खरीदी करता है
डगर
में हों कितने भी शूल पर, पिता नहीं उफ़ करता है।
क्यों
नहीं कभी ये कहते हैं, अपने मन की सारी बातें
क्यों
नहीं कभी बतलाते हैं, कितना ये हम सबको चाहें
माँ
की आँखें नम देखी हैं, पर इनकी आँखें बस रूखी हैं
कई
बार यही इक छाप बनी, की इनकी
भावना सूखी हैं
कोमल-सा
हृदय होते
भी हुए, हर पल चट्टान-सा रहता है
हो
जाए मन कितना घायल पर, पिता नहीं उफ़ करता है।
आ जाओ
मिलकर आज इन्हें, हम गले
लगा इक काम करें
चूम
लें इनके हाथों को और छूकर पैर प्रणाम करें
जब
सीने से इन्हें लगाओगे, थोड़ा-सा ये चकराएँगे
थोड़े
से होंगे भाव विह्वल, थोड़ी सख्ती दिखलाएँगे
फिर
चोरी-चोरी आँखों से, एक बूँद
ओस की हरता है
भावुक
मन की आँखें दर्पण पर, पिता नहीं उफ़ करता है
-0-
76 Chelsea Crescent, Bradford,
L3Z0J7
(कनाडा)
Friday, January 20, 2023
1274-आज कुछ ख़ास
आज कुछ ख़ास
शशि पाधा
चलो बचा लें
दुनिया की आपाधापी से
आधा दिन -आधी रात
सिर्फ
अपने लिए
तुम गुनगुनाना
कोई गीत
मैं जोड़ दूँगी
कोई भूली कड़ी
तुम आँखों से हँसना
मैं सुन लूँगी
खनकते साज
तुम चाँद देखना
मैं निहारूँगी
केवल तुम्हें —-
अभी बाकी
है
बहुत कुछ कहना
बहुत कुछ सुनना
वक्त का भरोसा नहीं
कब हाथ से
फिसल जाए
-0-
शशि पाधा
20 जनवरी, 2023
1273
1-होशियार /
भीकम सिंह
सभी
पहाड़ों ने बताया था
घने जंगलों का
संसाधन- आधार
परन्तु
दोहन के बाद हुआ
सरंक्षण में
कहाँ-कहाँ सुधार ?
दस्तावेजों में
विकास के लिए
योजनाएँ विकसित हुई
अनेकों बार
फिर भी
जमने ना दी
शिखर पर हिम
हर बार
सामान्य से
तापमान बढ़ा
मैदान चोटियों पर चढ़ा
बेशुमार
फिर
फफककर फूटा
पहाड़ का दुःख
जोशीमठ, कभी केदार
कितने
पर्यावरणविदों ने
दिखाये स्वप्न
ले-लेकर दो-चार
और कहा-
हम बचा लेंगे
कर देंगे सब ठीक
स्कीमें हैं तैयार
होशियार! होशियार! होशियार ।
-0-
2- प्रेम सुरभि डागर
आत्मिक
प्रेम में
मगन
हो जाती हूँ
झूमने
लगता है चित ,
आत्मा
निकल शरीर से
नृत्य
करने लगती है
तेरे
नयनों के पवित्र
प्रेम
में समा जाती हूँ
प्रकृति
के समर्थन से
मिल
पाती है
तुमसे
मेरी रूह
बहने लगती है
मन्द -मन्द सुगन्ध
चहचहा
उठते हैं
मोर, पपीहा आदि,
उड़ेल
देता है चाँद
अपनी चाँदनी को
हृदय
के प्याले में
मन उड़ता रहता है
मूरली
की धुन की ओर
समा
लेते हो तुम भी
मेरे
आत्मिक प्रेम को
अपने हृदय के किसी कोने
में।।
-0-