डॉ.कविता भट्ट
1
समय के
सुन्दर गालों पर
आओ मल दें प्रेम-गुलाल।
बैठकी का सुर संगीत सजा
अपनी ढपली अपनी ताल।
पिय के होंठों का रंग लेकर
अधर करें ये हम भी लाल।
उमंग भरी आँखें जिसकी
है मदमाती जिसकी चाल।
होली सी मस्ती में डूब लें
रंगीन सपने लें कुछ पाल।
2
बेरुखी मौसमों की, झेलें सर्दी-गर्मी-बरसात
परहित जीते हैं, फिर भी कटते हैं
बार-बार।
वृक्षों में साहस नारी -सा, बढ़ते हैं दिन-रात।
ये हैं तो जीवन वसन्त, साक्षी सब संसार।