पथ के साथी

Thursday, March 26, 2015

ऐसे स्वप्न सजाओ ।



डॉज्योत्स्ना शर्मा

सुनो पथिक तुम , हार न मानो
यूँ ठहर नहीं जाओ ।

जीवन पथ पर सबने चाहे
इच्छा-फल चखने
कुछ बोये अपनों ने, होते
कुछ केवल अपने
देकर श्रम की आँच ,सरस हों
ऐसे उन्हें पकाओ।
चित्रांकन : रमेश गौतम
विषधर मिलते , मगर न संचित
गरल करो इतना
जीवन सुन्दर है ,तुम इसको
सरल करो जितना
मधुर राग को सहज बजाओ,
मुश्किल नहीं बनाओ ।

कण-कण रचा सृजक ने, हितकर,
हर हीरा-तिनका
रूठें न ऋतुएँ थोड़ा-सा
मान करो उनका
लालच की लाठी ले ,सजती
बगिया नहीं मिटाओ ।

केवल अपना ही दुनिया में
सबने सुख चाहा
ग़ैरों की पीड़ा पर रोकर
जो रखता फाहा
उस पथ के हों पथिक, नयन में
ऐसे स्वप्न सजाओ ।
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